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श्रोप्रवचनसारटोका। ऐसे परमात्मा अरहंत ध्यानके फलको प्राप्त होकर, निरंतर आत्मानंदका विलास करते रहते हैं। यह ही परमपूज्यनीय देव ध्यान करने योग्य, पूज्यने योग्य व स्तुति करने योग्य हैं ॥११०॥ ___इस तरह केवली भगवान क्या ध्याते हैं व क्यों ध्याते हैं ? इस प्रश्नकी मुख्यतासे पहली गाथा, तथा वे भगवान परमसुखको ध्याते या अनुभवते हैं इस तरह उस प्रश्नका समाधान करते हुए दूसरी, इस तरह ध्यान सम्बन्धी पूर्वपक्षका परिहाररूपसे तीसरे स्थलमे दो गाथाएं पूर्ण हुई।
उत्थानिका-आगे विशेष करके समर्थन करते हैं कि यही अपने शुद्धात्माकी प्राप्ति लक्षण ही मोक्षमार्ग है, अन्य कोई मार्ग नहीं है।
एवं जिणा जिणिदा सिद्धा मग्गं समुद्विदा समणा । जादा णमोत्थु तेसि तस्स य णिचाणमग्गस्स ॥ ११ ॥ एवं जिना जिनेन्द्रा सिद्धा मागे समुत्थिताः अमणाः । ' जाता नमोस्तु तेभ्यातस्मै च निर्वाणमार्गाय ॥ १११ ॥
अन्वयसहित सामान्यार्थः-(एवं) इस तरह पूर्व कहे प्रमाण (मग्गं समुद्विदा) मोक्षमागको प्राप्त होकर (समणा) मुनि, (जिणा) सामान्य केवली निन, (निणिंदा) तथा तीर्थकर केवली जिन, (सिद्धा) सिद्ध परमात्मा (नादा) हुए (तेसिं) उन सबको (य) और (तस्स णिव्याणमग्गस्स) उस मोक्षमार्गको (णमोत्थु) नमस्कार हो।
विशेषार्थ-इस तरह बहुत प्रकारसे पहले कहे हुए निन परमात्मतत्वके अनुभवमई मोक्षमार्गको आश्रय करनेवाले जीव सुखदुःख आदिमें समताभावसे परिणमन करनेवाले तथा आत्मतत्वमें
एवं जि
सि तस्स हास्थिताः अमणाः ।,