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श्रीप्रवचनसारटोका। अन्तरंग बहिरंग परमगम्भीर प्रकाशमान आत्मज्योति जाज्वल्यमान हो जावे तो उसी समय मोहका घोर अन्धकार तेरे आत्मासे निकल जायगा।
वास्तवमे शुद्ध आत्माकी ओर लक्ष्य देनेसे ही मोहकी गांठ सूखकर गिर जाती है इस लिये निरन्तर शुद्ध आत्माका ही विचार करना योग्य है ॥ १०६ ॥
उत्थानिका-आगे दर्शनमोहकी गांठके टूटनेसे क्या होता है ? इस प्रश्नका समाधान करते हैं -
जो णिहदमोहगंठी रागपदोसे खोय सामपणे । होजं समसुहदुक्खो सो लोरा अवय लरदि ॥१०॥ यो नित्तम हान्यो राप्रपा पयिन्ता शरण्ये । - वेत् सनमुखदुःखः । सोख्यममा समते ॥ १०७ ॥
अन्यय रहित मामागार्थ -(जो) जो कोई (णिहदमोहगंठी ) नोहकी गांठको भय करके (सामण्णे) मुनि अवस्थामें रहकर (रागपदोसे) रागद्वेषोंको (खवीय) नाश करके (लमसुहदुक्खो होज) सुख दुखमें समताभाव रखनेवाला हो जाता है (सो) वह ज्ञानी जीव (अक्लयं सोरल) अदिनामी आनदो (सदि) प्राप्त करता है।
घि पार्थ-जोहोई पत्रमे कहे प्रकारसे मनमोहकी गांठको क्षय करके निचले अपने न्यभावने ठहरकर सपने गुह आत्माके निश्चल अनुभव स्वरूपपीतराग चारित्रको रोकनेवाले चारित्रमोहरूप
रागतोको नागवार के सपने शुद्ध जाना स्वानुभवले उत्पात रागादि विलोले रहित रेनतुल उसके अनुभवले दृष्ट होर सांसारिक सुख वदुःखसे उत्पन्न हर्ष विषादसे रहित होनेके कारणले सुख