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________________ ३५८] श्रीप्रवचनसारटोका। इस तरह अशुद्ध नयके आलम्बनसे अशुद्ध आत्माका लाभ होता है ऐसा कहते हुए पहली गाथा, शुद्ध नग्रसे शुद्ध आत्माका लाभ होता है ऐसा कहते हुए दूसरी, ध्रुव होनेसे आत्मा ही भावने योग्य है ऐसा कहते हुए तीसरी तथा आत्मासे अन्य सब अध्रुव हैं उनकी भावना न करनी चाहिये ऐसा कहते हुए चौथी, इस तरह शुद्धात्माके व्याख्यानकी मुख्यता करके पहले स्थलमें चार गाथाएं पूर्ण हुई। उत्थानिका-आगे इस तरह शुद्धात्माका लाभ होनेपर क्या फल होता है ? इस प्रश्नका उत्तर देते हैं: जो एवं जाणित्ता भादि पर अप्पगं विसुद्धप्पा । सागाराणागारो खवेदि सो मोहदुग्गठि॥ १०६ ॥ य एवं ज्ञात्वा ध्यायति परमात्मानं विशुद्धात्मा । साकारानाकारः क्षपयति स मोहदुर्गन्धिम् ॥ १०६ ॥ अन्वय सहित सामान्यार्थ:-(जो सागाराणागारो) जो कोई श्रावक या मुनि (एवं जाणित्ता) ऐसा जानकर (परं अप्पगं) परम आत्माको (विसुद्धप्पा) विशुद्धभाव रखता हुआ (शादि) ध्याता है (सो) वह ( मोटुगठि) मोहकी गांठको (खवेदि) नाश करदेता है। विशेषार्थ-जो कोई गृहस्थ या मुनि अथवा साकारसे ज्ञानोपयोगरूप, अनाकारसे दर्शनोपयोगरूप होकर अथवा साकारसे चिन्ह सहित मुनि या अनाकारसे चिन्ह रहित गृहस्थ होकर इस तरह पूर्वमे कहे प्रमाण अपने आत्माका लाभरूप स्वसंवेदन ज्ञानसे जानकरके परम अनन्तज्ञानादि गुणोके आधाररूप होनेसे उत्कृष्ठ
SR No.009946
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 02 Gneytattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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