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________________ ३५२ श्रोप्रवचनसारटोका । ज्ञानी वैसे ही परमात्माको पाता है, क्योंकि यह नियम है कि जैसा उपादान कारण होता है वैसा कार्य होता है। इस लिये यह बात जानी जाती है कि शुद्ध निश्चयनयसे शुद्ध आत्माका लाभ होता है। भावार्थ-यहां आचार्य शुद्ध आत्माके लाभका उपाय शुद्ध नयके विषयका अवलम्बन बताते है क्योकि शुद्ध निश्चयनय आत्माको एक अकेला परमशुद्ध, सर्व प्रकार रागादिभावोंसे रहित, आठ कर्मोसे शून्य, शरीरादिसे बाहर शुद्ध ज्ञान दर्शनमई देखनेवाली है। जो भव्य जीव इस शुद्धनयके द्वारा सर्व शरीरादि परद्रव्योमें अहंकार ममकार छोडकर मै ज्ञानानन्दमई सिद्ध सम शुद्ध निर्विकार हूं ऐसी भावना करते हुए ध्यानमें तिष्ठकर शुद्धात्माको ध्याते हैं वे ही शुद्ध आत्माके ध्याता होते हुए कर्मोके सम्बन्धको वीतराग परिणतिसे हटाते हुए आत्माके सच्चे स्वरूपको पाकर परमात्मा हो जाते है। श्री देवसेनाचार्यने श्री तत्वसारमें कहा है: मलरहिओ णाणमओ णिवसइ सिद्धोए जारिसो सिद्धो । ' तारिसओ देहत्यो परमो बंभो मुणेय वो ॥ २६ ॥ णोकम्मकम्मरहिओ केवलणाणाइ गुणसमिद्धो जो । सोहं सिद्धो सुद्धो णिचो एक्को णिरालंबो ॥ २७ ॥ सिद्धोऽहं सुद्धोऽह अणतणाणारगुणसमिद्धोऽह । देहपमाणो णिच्चो असखदेसो अमुत्तो य ॥ २८ ॥ थके मणसंकप्पे रुद्ध अक्खाण विसघवावारे । पयडइ बमसरूव अप्पाझागेण जोईणें ॥ २९ ॥ भावार्थ-जैसे कर्ममल रहित, ज्ञानमई, सिद्ध आत्मा सिद्धा
SR No.009946
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 02 Gneytattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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