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________________ ३४२] श्रीप्रवचनसारटोका । उत्थानिका-आगे पूर्वमें कही हुई ज्ञानावरणादि प्रतियोका जघन्य उत्कृष्ठ अनुभागका स्वरूप बताते हैं सुहपयडीण विसोही तिब्बो असुहाण संकिलेसम्मि। विवरीदो दु जहाणो अणुभागों सब्वपयडोणं ॥ १६ ॥ शुभप्रकृनीना विशुद्ध या तीतो अशुभाना सहेगे । विपरीतन्तु जघन्यो अनुभागो सर्वप्रकृतीना ॥ ९९ ।। अन्वय सहित सामान्यार्थः-(सुहपयडीण) शुभ प्ररूतियोंका (अणुभागो) अनुभाग (विसोही) विशुद्धभावसे (असुहाण) अशुभ प्रतियोका (संकिलेसम्मि) संश भावसे (तिब्बो) तीव्र होता है, (विवरीदो दु) परन्तु इसके विपरीत होनेपर (सव्वपयडीणं) सर्व प्रकृतियोका ( जाणो) जघन्य होता है। विशेषार्थ-फल देनेकी शक्ति विशेषको अनुभाग कहते है। तीव्र धर्मानुरागरूप विशुद्धभावसे सातावेदनीय आदि शुभ कर्म प्रतियोका अनुभाग परम अमृतके समान उत्कृष्ट पड़ता है तथा मिथ्यात्त्व आदिरूप संक्लेश भावसे असाता वेदनीय आदि अशुभ प्रतियोका अनुभाग हालाह्न विषके समान तीव्र पड़ता है। तथा जघन्य विशुद्धिसे व मध्यम विशुद्धिसे शुभ प्रकृतियोंका अनुभाग जघन्य या मध्यम पड़ता है अर्थात् गुड, खांड़, शर्करारूप पड़ता है। वैसे ही जघन्य या मध्यम संश्लेगसे अशुभ प्रकृतियोंका अनुभाग नीम, कांजीर विषरूप जघन्य या मध्यम पड़ता है । इस तरह मूल उत्तर प्रकृतियोसे रहित निन परमानंदमई एक स्वभावरूप तथा सर्व प्रकार उपादेय भूतं परमात्मद्रव्यसे भिन्न और त्यागने
SR No.009946
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 02 Gneytattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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