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________________ ३१२ ] श्रीप्रवचनसारटोका । । भावार्थ-अमूर्तीक आत्माके साथ मूर्तीक कोका बंध अनेकान्तसे असिद्ध नहीं है क्योकि किसी अपेक्षासे आत्माके मूर्तिपना सिद्ध है । इस अमूर्तीक आत्माका भी द्रव्य कौके साथ . प्रवाह रूपसे अनादिकालसे धारावाही सदाका सम्बन्ध चला रहा है इसीसे उन मूर्तीक द्रव्यकर्मों के साथ एकता होते हुए आत्माको भी मूर्तीक कहते हैं | बंध होनेपर मिसके साथ वन्ध होता है उसके साथ एक दूसरेमें प्रवेश होजानेपर परस्पर एकता होनाती है जैसे सुवर्ण और चांदीको एक साथ गलानेसे दोनों एक रूप होनाते हैं उसी तरह जीव और कर्मोका बंध होनेसे परस्पर एकरूप बंध होजाता है । तथा यह कर्मवद्ध संसारी आत्मा मूर्तिमान है क्योंकि मदिरा आदिसे इसका ज्ञान बिगड़ जाता है। यदि अमूर्तिक होता तो जैसे अमूर्तिक आकाशमें मदिरा रहते हुए आकाशको मदवान नहीं कर सक्ती वैसे आत्माके कभी ज्ञानमें विकार न होता । संसारी आत्मा मूर्तिक है इसीसे उसके कर्म बंध होता है। जैसे आत्मा निश्चयसे अमूर्तीक है वैसे उसके निश्चयसे वध भी नहीं है। जैसे आत्मा व्यवहारसे मूर्तीक है वैसे उसके व्यवहारसे बंध भी होता है । इस तरह अनेकांतसे समझ लेनेमे कोई प्रकारकी शंका नहीं रहती है। सर्वथा शुद्ध अमूर्तीक यदि आत्मा होता तो इसके बंध मूर्तीकसे कभी प्रारंम नहीं हो सक्ता था । अनादि संसारमे कर्म सहित ही आत्मा जैसा अब प्रगट है वैसा अनादिसे ही चला आ रहा है इसीसे कर्मबंधको व्यवस्था सिद्ध होती है ।। ८५ ॥ ___ इस तरह शुद्धबुद्ध एक स्वभावरूप जीवके कथनकी मुख्यतासे एक गाथा, फिर अमूर्तीक जीवका मूर्तीक कर्मके साथ कैसे ।
SR No.009946
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 02 Gneytattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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