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। द्वितीय खंड। ग्वालियेका जो सच्चे बैलको अपना जानता है । यद्यपि दोनो ही तरहके बैल बालक या ग्वालियेसे जुदे हैं तथापि यदि कोई उनको नष्ट करे, बिगाडे ब ले जावे तो बालक और ग्वालिये दोनोको महा दुःख होगा क्योकि उनका ज्ञान उन बैलोंके निमितसे उनके आकार राग सहित परिणमन कररहा है । यही उन परस्वरूप वैलोके साथ उनके सम्बन्धका व्यवहार है। इसी तरह अमूर्तीक आत्माका जो अनादिकालसे प्रवाहरूपसे एक क्षेत्रावगाहरूप पुद्गलीक कर्मोके साथ सम्बन्ध चला आरहा है उनके उदयका निमित्त पाकर राग द्वेष मोहरूप अशुद्धोपयोग होता है यही भाव बध है । इसीसे आत्मा बधा हुआ है । पुद्गलीक कर्मोंका बंध व्यवहार मात्र है। यही भाववध द्रव्यवधका कारण है। भावनधसे नवीन द्रव्य कर्म उसी कर्म सहित आत्मामें सयोग पालेते है । श्री तत्वार्थसारमे अमृतचद्रस्वामीने इसी प्रश्नको उठाकर कि अमूर्तीकका बन्ध मूर्तीकके कैसे होता है ? इस तरह समाधान किया है.
न च चन्धापसिद्धिः स्यान्मूतैः कर्ममिरात्मनः । अमृतरित्यने का तात्तस्य मूर्तित्वसिद्धितः ।। १६ ।। अनादिनित्यसम्बन्धासह कर्मभिरात्मनः । अमूर्तस्यापि सत्यैक्ये मूतत्त्वमवसीयते ॥ १७ ॥ धन्धं प्रति भवत्यै स्मन्योन्यानुप्रवेशतः । युगपद्दापितः स्वर्णरौप्यवजेवमण : ॥ १८ ॥ तथा च मूर्तिमानात्मा सुगाभिभवदर्शनात् । न ह्यमूर्तस्य नमसो मदिरा मदकारिणी ॥ १९ ॥