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________________ श्रीप्रवचनसारटोका । हैं । इन चार शरीरोंको नोकर्म कहते हैं । यह संसारी जीव किसी भी स्थूल औदारिक शरीरमें जो मनुष्य तथा तियचोंके होता है तथा वैक्रियिक शरीरमें जो देव व नारकियोके होता है, उसी समय तक रह सकता है जहांतक उस गति सम्बन्धी आयु कर्मकी वर्गणाएं उदय देती रहती हैं। जब उस विशेष आयुकी सब वर्गणाएं झड जाती हैं तब ही इस जीवको वह गति और वह शरीर छोड़कर अन्य किसी बांधी आयुके उदयसे अन्यभवमें जाना पड़ता है। तब जाते हुए मार्गमें जिसको विग्रहगति कहते हैं इस जीवके साथ दो सूक्ष्म शरीर रहते है-एक तेजस शरीर, दूसरा अपने ही बांधे हुए द्रव्य कर्मोका कार्माण शरीर। इन द्रव्य कर्मोका उदय कभी बंद नहीं होता। विग्रहगतिमे वे अपने असरसे जीवको लेजाते हैं । जब यह तीन, दो वा एक समय मात्र मोड़े लेनेके कारण विग्रहगतिमें रहता है तब इसके औदारिक और क्रियिक शरीर नहीं होता । जो जीव मोडे नहीं लेता है सीधा दूसरे भवमें जाता है वह मरणसे दूसरे समयमें ही अन्य जन्ममें जन्म लेलेता है। जिसको मध्यमें एक समय लगेगा वह मरणके तीसरे समयमें, निमको दो समय लगेंगे वह मरणके चौथे समयमें, जिसको तीन समय लगेंगे वह मरणके पांचवे समयमें जन्म लेलेता है।मरणका समय व उत्पत्तिका समय यदि न गिना जावे तो विग्रह गतिमें अधिकसे अधिक तीन समय ही लगे । औदारिक या वैक्रियिक शरीर योग्य वर्गणाओको ग्रहण करना यही जन्मका प्रारम्भ है । कर्मोके ही उदयसे यह जीव विना चाहे हुए मरण . ' करके दूसरी पर्यायमें उत्पन्न होता है। वहां वर्गणाओंका ग्रहण नाम
SR No.009946
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 02 Gneytattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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