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________________ द्वितीय खंड । [२६७ उत्थानिका-आगे कहते हैं कि शरीरके आकार परिणत होनेवाले पुद्गलके पिडोंका भी जीव कर्ता नहीं है ते ते कम्मत्तगदा पोग्गलकाया पुणो हि जोवस्स । संजायंते देहा देहतरसंकम पप्पा ॥ ८१ ॥ वे ते कर्मत्वगताः पुद्गलकायाः पुनहि जीवस्य । सजायन्ते देहा देहा तरसक्रम प्राप्य ॥ ८१ ॥ अन्वय सहित सामान्यार्थः-(ते ते) वे वे पूर्व बांधे हुए, (कम्मतगदा) द्रव्यकर्म पर्यायमें परिणमन किये हुए (पोग्गलकाया) पुद्गल कर्मवर्गणास्कंध (पुणो वि) फिर भी (नीवस्स) जीवके (देहंतर सकम) अन्य भवको (पप्पा) प्राप्त होनेपर (देहा) शरीर (संजायते) उत्पन्न करते हैं। विशेषार्थ-औदारिक आदि शरीर नामा नामकर्मसे रहित परमात्मखभावको न प्राप्त किये हुए जीवने जो औदारिक शरीर आदि नामकर्म बाधे हैं उस जीवके अन्य भवमें जानेपर वे ही फर्म उदय आते हैं। उनके उदयके निमित्तसे नोकर्म वर्गणाएं औदारिक आदि शरीरके आकार स्वयमेव परिणमन करती है इससे यह सिद्ध है कि औदारिक आदि शरीरोका भी जीव कर्ता नहीं है। . भावार्थ-इस गाथामें आचार्य मुख्यतासे इस बातको बताते . हैं कि जैसे द्रव्य कर्मोंका कर्ता आत्मा नहीं है वैसे नोकर्मीका भी कर्ता नहीं है । द्रव्यकर्मोके उदयसे विशेष करके शरीर नामा नामकर्मके उदयसे औदारिक, वैक्रियक, आहारक, तैजस शरीरके आकाररूप परिणमन करनेको वर्गणाएं आती है और वधन संघात आदि कर्मके उदयसे इन चारों शरीरोंके आकाररूप स्वयं
SR No.009946
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 02 Gneytattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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