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________________ द्वितीय खंड | [ २८३ स्कंधोंके गोल, चौखुंटे, तिखुटे आदि आकर सब परस्पर बंधकी अपेक्षासे होजाते है । एक रतन पापाणकी खान में अनेक प्रकारके स्पर्श, रस, गंध वर्णधारी छोटे चड, टेढे सीधे, पाषाण खंड परमाणुओंके स्निग्ध रूक्ष गुणोंके विचित्र परिणमनकी अपेक्षा खभावसे ही बन जाते हैं - उनको वहा कोई बनाता नही है । जैसे प्रत्यक्ष जगतमें मेघ जल आदिके व इन्द्र धनुष, विजली आदिकेवाभाविक परिणमन देखनेमे आते है वैसे सर्वत्र पुद्गलोके ही विचित्र परिणमनसे नानाप्रकार रुब बन जाते है । जैसे श्री नेमिचन्द्रसिद्धातचक्रवतीने गोम्मटसारमें कहा है - गिद्धदर गुण अहिया हीण परिणामयति वर्धम्म | जासं जाणत पदे खाण सबाग || ६१८ ॥ अर्थ - संख्यात, असंख्यात व अनंत देशवाले स्कधोमें स्निग्ध या रूक्ष अधिक गुणवाले परमाणु या स्कंध अपनेसे हीन गुणवाले परमाणु या स्रुधोको अपनेरूप परणमाते हैं । जैसे एक हजार स्निग्ध या रूक्ष गुणके अशोसे युक्त परमाणु या स्कधको एक हजार दो अंशवाला स्निग्ध या रूक्ष परमाणु या स्कंध परणमाता है। इससे यह भी सिद्ध होना है कि दो अधिक अशके होते हुए रूग्वे या चिकने परमाणु या स्कंध परस्पर एक दूसरेसे अपनी ही शक्ति बन्ध जाते हैं । इसी शक्तिके कारण पुद्गलोकी विचि - त्रता जगतमें प्रगट हो रही है । ऐसा जानकर 'कि पुद्गल पर्यायका उपादान कारण पुद्गल ही‍ है व सब प्रकार के जीवों के शरीरोकी रचना पुद्गलके ही उपादान
SR No.009946
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 02 Gneytattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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