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________________ २०७] श्रीप्रवचनसारटोका। चिकने या रूखे परमाणुके साथ (वज्झदि) बंध जाता है। विशेषार्थ-गाथामें गुण शब्दसे शक्तिके अशोको अर्थात् अविभाग परिच्छेदोको ग्रहण करना चाहिये । जैसे पहले कहे हुए जलविदु तथा वालूके दृष्टातसे जिन जीवोका रागद्वेष परमानन्दमई खसंवेदन ज्ञानगुणके वलसे नष्ट होगया है उनका कर्मके साथ बन्ध नहीं होता। इसी तरह निन परमाणुओंमें जयन्य चिकनाई या रूखापन है, उनका भी किसीसे बंध नहीं होता। बन्ध दो अंशकी अधिकतासे दो अंश या तीन अश आदिधारी परमाणुओंका परस्पर होगा जैसा इस गाथामें कहा है: पुणवत्स णिद्वेण दुराहिए। लुक्खाप लुक्खेण दुराहिएण । णिद्धस्स लुक्खेण हवेन्ज बधो जहण्णवजे विसमे वा ॥ (गोमरसारजीवकाह ६१४) । माव यह है कि जघन्य अंश परमाणुको छोड़कर दो चार आदि सम संख्यामें या तीन पांच आदि विषन संख्या में हो तो भी दो अंश अधिक होनेसे चिकनेका चिकनेके साथ, रूखेका रूखेके साथ तथा चिकनेका रूखेके साथ बंध होजायगा। भावार्थ-इससे पहली गाथामे अच्छी तरह खोल दिया है। इस तरह पूर्वमें कहे प्रमाण स्निग्ध रूक्ष अवस्थामें परिणत परमाणुका स्वरूप कहते हुए पहली गाथा, स्निग्ध रूक्ष गुणका वर्णन करते हुए दूसरी, स्निग्ध या रूक्ष गुणमें दो अंश अधिकसे बन्ध होगा ऐसा कहने हुए तीसरी तथा उसके ही दृढ़ करनेके लिये चौथी इस तरह परमाणुओके परस्पर बंधके व्याख्यानकी मुख्यतासे पहले स्थलमें चार गाथाएं पूर्ण हुई।
SR No.009946
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 02 Gneytattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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