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द्वितीय खंड।
[२.९ वघका भाव यह है कि परस्पर मिलके एकरूप होजाना। यदि तीन गुणवाले रूखे परमाणुके साथ पाच गुणवाले चिकने परमाणुका वध होगा तो वध होनेपर वह स्कंध चिकना होजायगा जैसा श्री उमाखामी महाराजने श्री तत्वार्थसूत्रमें कहा है "वधेऽधिकौ पारिणामिको च।" ३७५॥ अर्थात् बंध होते हुए अधिक गुणवाला दूसरेको अपनेरूप परिणमा लेता है। सर्वज्ञज्ञानमे निस तरह परमाणुओंके स्कंध बननेकी रीति झलकी थी उसका यहा कथन पिया गया है । वर्तमानमे यदि विज्ञान उन्नति करे तो इस नियमको प्रत्यक्ष करके दिखा सकेगा । सर्वज्ञके ज्ञानकी अपूर्व शक्ति है, इसलिये सर्वज्ञ भापित कथन किसी तरह असत्य नहीं पड़ सत्ता, ऐसा जानकर निज आत्माको सर्वज्ञत्त्व प्राप्त करानेके लिये रागडेप त्याग शुद्धोपयोगमे ही हमको प्रवर्तना योग्य है ।। ७६ ॥
उत्थानिका-आगे इसी ही पूर्व कहे हुए भावको विशेष समर्थन करते है
णिडत्तणेण दुगुणो चदुगुणणिद्धेण बधमणुभवदि । लुक्खेण वा तिगुणिदो अणु वज्झदि पञ्चगुणजुत्तो | स्निग्यत्त्वेन द्विगुणश्चतुर्गुणस्निग्धेन बन्धमनुभवति । रूक्षेण वा त्रिगुणतोऽणुध्यते पचाणयुक्तः ॥ ७७ ॥
अन्वय सहित सामान्यार्थ--(णिद्धत्तणेण ) चिकनेपनेकी अपेक्षा ( दुगुणो) दो अशधारी परमाणु ( चदुगुणणि ण वा लुक्खेण ) चार अशधारी चिकने या रूखे परमाणुके साथ (बंधम् अणुभवदि) बन्धको प्राप्त हो जाता है । ( तिगुणिदो अणु) तीन अंशधारी चिकना या रूखा परमाणु (पचगुणजुत्तों) पांच अशधारी