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________________ २७८] श्रीप्रवचनसारटोका। भावार्थ-इस गाथामें अच्छी तरह स्पष्ट कर दिया है कि परमाणुओंके परिणमन शक्तिके अंशोंकी अपेक्षा अनेक प्रकारके होते हैं। वे परमाणु रूखे हो या चिकने हो परस्पर दो अंश अधिकता रखनेसे बंध नाते हैं । ऐसा कुछ वस्तुका खभाव है कि दो अंशकी ही अधिकताके अंतरसे परमाणुओंका बन्ध होता है-न तो एक अंशकी अधिकतासे होता है न दोसे अधिक अंशकी अधिकतासे होता है। इसपर भी जिस परमाणुमें सबसे कम चिकनई या रुखापन होगा वह भी किसीसे नहीं बंधेगा। इस तरह दो अंशवालेका चार अंशवालेके साथ, चार अंशवालेका छह अंशवालेके साथ, छह अंशवालेका आठ अंशवालेके साथ, आठ अंशवालेका दश अंशवालेके साथ बन्ध होजायगा। इस तरहके बन्धको सम संख्याका बन्ध कहते, हैं। सम जातिकी संख्यामे दो अधिक होनेसे बराबर बन्ध होजायगा जैसे किसी परमाणुमें एक हजार दो अंश हैं दूसरेमें एक हजार चार अंश है तो परस्पर बन्ध हो जायगा । इसी तरह तीन अंशवालेका पांच अंशवाले परमाणुके साथ, पांच अंशवालेका सात अंशवालेके साथ, सात अशवालेका नौ अंशवालेके साथ, नौका ग्यारह अंशवाले परमाणुसे बंध होजायगा, इसको विसम सख्याका बध कहते हैं । इसमें भी दोकी अधिकतासे बराबर बंध होता रहेगा । जैसे तीन हजार पांच अशधारी परमाणुका तीन हजार सात अंशधारी परमाणुके साथ बंध होजावेगा । बंध होनेमें यह बात नहीं है कि रूखा चिकनेसे ही बंधे, किन्तु यह बात है कि रूखा रूखेसे, चिकना चिकनेसे व रूखा चिकनेसे तीनो प्रकारसे बंध होता है।
SR No.009946
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 02 Gneytattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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