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________________ द्वितीय खंड । [ २७७ णुमें दो अंश अधिक होगए तब वह परमाणु चार अंशरूप शक्तिमें परिणमन करनेवाला होजाता है। इस चार गुणवाले परिमांणुका पूर्वमें कहे हुए किसी ढो अंशधारी परमाणुके साथ वध होजायगा तैसे ही दो परमाणु तीन तीन अश शक्तिधारी हैं उनमें से एक तीन अंश शक्ति रखनेवाले परमाणु में मानलो परिणमन होनेसे ढो शक्तिके अंश अधिक होनेसे वह परमाणु पांच अंशवाला होगया । इस पंच अंशवालेका पहले कहे हुए किसी तीन अशवाले परमाणुसे बघ होजावेगा । इसतरह दो अंशधारी चिकने परमाणुका दूसरे दो अधिक अंशवाले चिकने परमाणुके साथ या दो अशवाले रूखेका दो अधिक अंशवाले रूखेके साथ, वां दो अशवाले चिकनेका दो अधिक अंशवाले रूखे परमाणुके साथ बघ होजावेगा । इसी तरह समका या विषमका बंध दो अंशकी अधिकता होनेपर ही होगा। जो परमाणु जघन्य चिकनईको जैसे जलमें मान ली जावे या जघन्य रूखेपनेको जैसे बादकणमें मान लीजावे, रखता होगा उनका बंध उस दशामें किसी भी परमाणुसे नही होगा । यहा यह भाव है कि जैसे परम चैतन्यभाव परिणतिको रखनेवाले परमात्मा के स्वरूपकी भावनामई धर्मध्यान या शुक्ल ध्यानके वलसे जब जघन्य चिकनईकी शक्तिके समान सब राग क्षय होजाता है या जघन्य रूखेपनेकी शक्तिके समान सर्व द्वेष क्षय होजाता है तत्र जैसे जलका और बालूका बंध नहीं होता वैसे जीवकां कर्मोसे बध नही होता। वैसे ही जघन्य, स्निग्ध या रूक्ष शक्तिधारी परमाणुका भी किसीसे बँध नहीं होगा यह अभिप्राय है ।
SR No.009946
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 02 Gneytattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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