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२७६] श्रीप्रवचनसारटोका । लगनेसे कालान्तरमे चिकना स्पर्शवाला होजाता है। ऐसा वस्तुस्वभाव जानकर अपने आत्माको शुद्ध निश्चयनयसे सिद्ध समान अनुभव करके तथा सर्व प्रकारके परमाणुओसे जुदा जान करके अपने स्वाभाविक सहा परिणमनका धारी मान करके हरसमयः शुद्ध ज्ञानानंदका ही स्वाद लेना योग्य है, यह भाव है ।
उत्थानिका-अब यहां प्रश्न करते हैं कि किस प्रकारके चिकने रूखे गुणसे पुद्गलका पिड बनता है ? इसीका समाधान करते हैंणिद्धा वा लुफ्खा वा अणुपरिणामा समा व विसमा. वा । ' समदो दुराधिका जदि वज्झन्ति हि आदिपरिहीणा ॥ ७६ ॥ स्निग्धा वा रूक्षा वा अणुपरिणामा समा वा विषमा वा । समतो द्वयधिका यदि बध्यन्ते हि आदिपीरहीनाः ।। ७६ ॥
अन्वय सहित सामान्यार्थः-( अणुपरिणामा ) परमाणुके पर्याय भेद (णिद्धा वा लुक्खा वा) स्निग्ध हो या रूक्ष हो (समा वा) दो, चार, छ. आदिकी गणनासे समान हो (विसमा वा) वा तीन, पांच, सात, नव आदिकी गणनासे विषम हो (जदि) जो (हि) निश्चयसे (आदिपरिहीणा) जघन्य अंशसे रहित हो (समदो) तथा • शिनतीकी समानतासे ( दुराधिका ) दो अधिक अंशमें हो तो (वज्झन्ति) परस्पर बंध जाते हैं।
विशेषार्थ-पुद्गलके परमाणु रूक्ष हो या स्निग्ध गुणमें परिगत हों तथा सम हों या विषम हो, दो गुणांश अधिक होनेपर परस्पर बंध जाते हैं। दो गुण अधिकपनेका भाव यह है कि मानलो एक दो अंशवाला परमाणु है तथा दूसरा भी दो अशवाला है इतने हीमें परिणमन करते हुए एक किसी दो अंशवाले परमा