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________________ द्वितीय खंड | [ २५ चिकने या रूखेपनके हो जाते हैं - अथवा कोई परमाणु अधिक अंश चिकने या रूखेपनेको रखता था सो अंशों में घटते हुए एक अंश तक शक्तिका धारी हो सक्ता है । जैसे जलकी चिकनईसे चकरीके दूधमें चिकनई ज्यादा है, बकरीके दूधसे गायके दूधमें, गायके दूससे सके दूध में ज्यादा है। इसी तरह एक ही समय में अनंत परमाणुओं में भिन्न२ प्रकारकी कमती बढ़ती अंशोंको रखनेचाली चिकनई या रूखापन होता है। संभव है बहुतसे परमाणु समान अविभाग परिच्छेदोंके धारक एक समयमे हों । वास्तवमें प्रत्येक परमाणु अनंत, स्निग्ध या रूक्ष शक्तिका धारक है। तथापि उसके अशोंमें पर निमित्तके यशसे परिणमन होता रहता है जिस परिणमनको हम तिरोभाव या आविर्माव कहसते हैं। जितनी चिकनई या रूखापन प्रगट है उसका तो आर्विभाव है व जितनी चिकनई या रूखापन अप्रगट है उसका तिरोभाव है। जैसे जीव कषायके मंद उदयसे मदराग द्वेषको, मध्यम कषायोदयसे मध्यमरागद्वेषको तथा उत्कृष्ट कषायके उदयसे उत्कृष्ट राग द्वेषको प्रगटाता 'है । जीवका चारित्रगुण कपायोंके उदय के निमित्तसे तिरोहित होता है - जितना कम उदय होता है उतना कम ढकता है । . परमाणुमे यह परिणमन शक्ति न होती तो एक कच्चा आम पक नानेपर अधिक चिकना न होता व जल गायके शरीर के स्पर्शसे दूधकीसी चिकन में न परिणमन करता । यह परिणमनशक्ति वस्तुका स्वभाव है, प्रत्यक्ष अनुभवगोचर है । कालादिके निमित्तसे पुद्गल द्रव्य परिणमते हुए दिखाई 'पड़ते हैं। एक पत्थर जो रूक्ष स्पर्शका होता है रस्सीकी रगड़के
SR No.009946
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 02 Gneytattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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