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२४] 'श्रोप्रवचनसारटोका । आदि लेकर (एगुत्तम्) एक एक बढ़ता हुआ (परिणामादो) परिणमन शक्तिके विशेषसे (जाव अणंतत्तम् ) अनंतपने तक (अणुहवदि) अनुभव करता है ऐसा (भणिदः) कहा गया है।
विशेषार्थ-जैसे जल, बकरीका दूध, गायका दूध, भैंसका दूध एक दूसरेसे अधिकर चिकनाईको रखता है इसी तरह यह संसारी नीव चिकनाईके स्थानमें रागपनेको, रूखेपनके स्थानमे द्वेषपनेको बन्धके कारणभूत नघन्य विशुद्ध या संक्लेश भावको आदि लेकर परमागममें कहे प्रमाण उत्कृष्ठ विशुद्ध या संक्लेश भाव पर्यंत क्रमसे बढ़ता हुआ रखता है । इसी तरह पुद्गल परमाणु द्रव्य भी पूर्वमें कहे हुए नल दूध आदिकी बढ़ती हुई शक्तिके दृष्टान्तसे एक गुणं नामकी जवन्य शक्तिको आदि लेकर क्रमसे गुण नामसे प्रसिद्ध अविभाग परिच्छेदोकी शक्तिसे बढ़ता हुआ अनन्तगुणतक चला जाता है। क्योंकि पुद्गल द्रव परिणमनशील है। परिणामोंका होना वस्तुका खभाव है सो कोई मेटनेको समर्थ नहीं है ।
• भावाय-यहां यह दिखलाते हैं कि पुद्गलके परमाणुओंमें रूखा तथा चिकना स्पर्शगुण होता है । उस स्पर्शके अनंत भेद होते हैं। सव ही परमाणु परिणमनशक्तिके निमित्तसे तथा द्रव्य क्षेत्र काल भावकी सहायतासे अपने स्पर्श रस गंध वर्णमें परिणमन करते रहते हैं । इसी परिणमनके कारण चिकनेपन तथा रूखेपनके अनंत भेद होनाते हैं । जो परमाणु किसी विशेष समयमें एक जघन्य अंश या अविभाग परिच्छेद कि जिससे कम अंश नहीं होसक्ता रखता है वही परमाणु दूसरे आदि समयोमें अधिक अंशरूप हो जाता है । यहांतक कि उसमें अनंत अंश