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द्वितीय खंड ।
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जाते हैं। पानी स्वयं नीमकी संगतिसे कडुवा, ईखकी संगतिसे मीठा नींबूकी संगतिसे खट्टा हो जाता है । पानीके बहावसे नदीके किनारे टूट जाते हैं - पानी मट्टीको वहा ले जाता है व मट्टी कहीं जमकर टापूसा बन जाती है। सूर्यकी गरमी पाकर मोम स्वयं पिघल जाता है। हवा लगने से मकान, कपडे, बर्तनादिकी अवस्था पलट जाती है । इत्यादि जगतमें अकेले ही पुद्गल अपने भिन्न २ स्वभावसे बडे २ काम करते दिखाई पडते हैं। इसी तरह परमाणु भी दो अधिक चिकने या रूखे अंशधारी परमाणुसे बघ जाते हैं । जैसे परमाणु बंधकर स्कंध हो जाते है वैसे स्कंध टूटकर परमाणुकी अवस्थामें भी आजाते हैं । जिसमें मिलने बिछुडनेकी शक्ति हो 1 उसे ही पुद्गल कहते है । इससे यह बात बताई गई है कि शरीर, बचन तथा मन जिन स्कंधोंसे बने है वे स्कप स्वय परमाणुओके बधनेसे पैदा होते रहते हैं । आत्मा स्वभावसे पुद्गलसे भिन्न है ऐसा समझकर शुद्ध आत्माके मननमें उपयुक्त हो साम्यभावकी प्राप्ति करनी चाहिये, यह तात्पर्य है ।
उत्थानिका- आगे वे स्निग्ध रूक्ष गुण किस तरह है ऐसा प्रभ होनेपर उत्तर देते है
गुत्तरमेगादी अगुस्स विद्धत्तणं व लुक्खत्तं । परिणामादो भणिदं जाव अनंतत्तमगुहवदि ॥ ७५ ॥
एकोत्तरमेकाद्यणोः स्निग्धत्त्व वा रूक्षत्त्वम् । परिणामाद् भणित याचदनन्तत्त्वमनुभवति ॥ ७५ ॥ अन्वयसहित सामान्पार्थ - ( अणुम्स) परमाणुका ( णिडत्तणं वा लक्खतं) चिकनापना या रूखापना ( एगादी ) एक अशको