SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 293
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २७२ ] श्रीप्रवचनसारटोका । पर्यायसे रहित है (णिद्धो वा लुक्खो वा) स्निग्ध होता है या रूक्ष होता है इस कारण से (दुपदेशादित्तम् ) दो प्रदेशोंके व अनेक प्रदेशोके मिलनेसे बंध अवस्थाको (अणुवदि) अनुभव करता है। विशेपार्थः - जैसे यह आत्मा शुद्धबुद्ध एक स्वभावरूपसे बंध रहित है तौ भी अनादिकालसे अशुद्ध निश्वयनयसे स्निग्धके स्थानमें रागभावसे और रुक्षके स्थानमें द्वेषभावसे जब जब परिणमन करता है तब तब परमागममें कहे प्रमाण बंधको प्राप्त करता है तैसे ही परमाणु भी स्वभावसे वंध रहित होने पर भी जव जत्र बंधके कारणभूत स्निग्ध रूक्ष गुणसे परिणत होता है तब तक दूसरे पुद्गल परमाणुसे विभाव पर्यायरूप बंधको प्राप्त होजाता है। भावार्थ - आचार्य ने इस गाथामें यह दिखलाया है कि परमाशुओंमें स्वयं बंध होनेकी शक्ति है जैसे कोई संसारी जीव बंध न चाहता हुआ भी जब २ रागद्वेषसे परिणमन करता है तब २ कर्म वर्गणाएं स्वय आकर बन्ध जाती हैं ऐसा कोई विलक्षण निमित्त नैमित्तिक सम्बन्ध है वैसे परमाणु भी अपने स्निग्ध और रुक्ष गुणके कारण परस्पर बध जाते हैं और स्वय स्कंधरूप बहुप्रदेशी होजाते हैं । यद्यपि एक परमाणु स्वभावसे बहु प्रदेश रहित एक प्रदेशी है तथा स्पर्श रस गध वर्ण गुणोको रखनेवाला है और शब्द रहित है तथापि स्कन्ध वनकर बहुप्रदेशी होजाता है। जगतमें परमाणु परस्पर मिलकर अनेक तरहके स्कंधों में सदा बनते रहते हैं । जैसे अग्निकी गरमी से पानी अपने आप भाफ बन जाता है । भाफ जमकर मेघ होजाते हैं। मेघोंमें बरफ गोले होजाते हैं । बरफके गोले गिरते हैं - गिरते २ गरमीके कारण स्वयं पानीरूप हो 1 1 ,
SR No.009946
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 02 Gneytattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy