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________________ ८] श्रीप्रवचनसारटीका । सवोमें हरएक समयमें पाया जाता है। जो द्रव्य जगतमें एक एक ही हैं जैसे धर्म, अधर्म और आकाश इनमे अर्ध्वता सामान्यपना तो सहजमे समझमे आता है क्योंकि साभाविक परिणमन हरममय होते हुए भी धर्म, अधर्म या आकागका वोध बना रहता है। तिर्यक सामान्यपना सिद्ध करनेके लिये यदि हम इनके प्रदेशोंकी कल्पना करके विचार करें और एक एक प्रदेशको एक एक व्यक्ति मान लें तो एक ही समयमे सर्व प्रदेशोमें यह धर्म, अधर्म या आकाश ही है ऐसी प्रतीति हो जायगी क्योकि जितने गुण एक प्रदेशमे है उतने ही सर्व प्रदेशोमे है। द्रव्य गुणमई होते है इसका भाव यह है कि द्रव्य एक प्रदेशी या बहु प्रदेशी जितने बड़े आकागके प्रदेशोकी अपेक्षासे होते हैं उतना बडा उनका आकार होता है । जिस वस्तुकी सत्ता इस जगतमे मानी जायगी उस वस्तुका कोई न कोई आकार अवश्य होगा। जितने आकाशमे जो वस्तु पाई जाती है उतना ही उस वस्तुका आकार है। एक परमाणु छुटी हुई अवस्थामें बहु प्रदेशी होनेकी शक्ति को रखते हुए भी तथा एक कालगणु सदा ही एक प्रदेशी रहनेके कारणसे एक प्रदेशी द्रव्य हैं जब कि हरएक जीव हरएक पुद्गलका स्कध, धर्मद्रव्य, अधर्म द्रव्य तथा आकाश द्रव्य बहु प्रदेशी हैं। जितना बड़ा जो द्रव्य है उतनेमें उस द्रव्यके सर्वसामान्य और विशेष गुण व्यापक होते है। जहां एक गुण है वही सर्व गुण हैं । जैसे एक जीव असख्यात प्रदेशी है उसके हरएक प्रदेशमे हरएक सामान्य और विशेष गुण व्यापक है इसी ' लिये द्रव्यको गुणोका अखंड पिड या समुदाय कहते हैं। अस्तित्व,
SR No.009946
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 02 Gneytattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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