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५.
द्वितीय खंड |
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वस्तुत्व, द्रव्यत्व, अगुरुलघुत्व, प्रदेशत्व तथा प्रमेयत्व ये सामान्य गुण हैं जो सर्व द्रव्योमें साधारणतासे पाए जाते है। विशेष गुण वे हैं जो हर एक द्रव्यमे भिन्न होते हैं । जीवके विशेष गुण पुद्गलमें नही, पुद्गल विशेष गुण जीवमे नही । जीवके विशेष गुण चेतना, सुख, वीर्य्य, सम्यक्त, चारित्र हैं, पुद्गलके विशेष गुण स्पर्श, रस, गन्ध और वर्ण हैं, धर्मका विशेष गुण जीव पुद्गलको गति हेतुपना, अधर्मका स्थिति हेतुपना, आकाशका सबको अवगाह हेतुपना तथा काल द्रव्यका सबको वर्तना हेतुपना विशेष गुण हैं । यद्यपि द्रव्यमे अनंतगुण होते हैं परंतु ग्रन्थकारोने थोडेसे ही गुण वर्णन किये है जिनसे हरएक द्रव्य भिन्न २ करके पहचाना जा सके । जब द्रव्योकी पहचान होजाती है और उनका र्ता होने लगता है तब अन्य भी शक्तियां या गुण अनुभवमें आने लगते है । एक द्रव्यके सब गुण सब गुणोमे परस्पर व्यापक होते है । जीव जहां चेतना है वही अन्य सर्व गुण हैं । जो 1 द्रव्य अनेक है जैसे पुद्गल, जीव और कालाणु वे सदा अनेक रूप रहते हैं - कभी भी मिलकर एक रूप नही होजाते हैं । पुद्गलके परमाणुओमे इतनी विलक्षणता है कि वे अलग भी रहते है तथा परस्पर स्निग्ध रूक्ष गुणके कारणसे मिल भी जाते है और तब वे स्कंध कहलाते है | ऐसे स्कधोसे परमाणु छूटते भी रहते हैं और I उनमे मिलते भी रहते है । ऐसा मिलना और विछुडना जीवोंमें तथा कालाणुओमे कभी न था, न है, न होगा । सर्व जीव सदासे 1 जुदे जुदे हैं व रहेंगे-ऐसे ही सर्व कालाणु सदासे जुदे २ हैं व रहेंगे । पुद्गलका हरएक परमाणु अपने गुणोकी समानताकी अपेक्षा