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________________ द्वितीय खंड | देहो य मणो वाणी पोगंलदव्वप्यगति णिद्दिट्ठा । पौग्गलदन्यं पिं पुणो पिंडो परमाणुव्वाणं ॥ ७२ ॥ देव मनो वाणी पुद्गलद्रव्यात्मका इति निर्दिष्टाः । पुद्गलद्रव्यमपि पुनः पिंड: परमाणुद्रव्याणाम् ॥ ७२ ॥ अन्वय सहित सामान्यार्थ - ( देहो य मणो वाणी ) शरीर, - मन और वचन ( पोग्गलदव्वप्पत्ति ) ये तीनों ही पुद्गल दव्यमई (पिट्ठिा) कहे गए हैं। (पुणो ) तथा ( पोग्गलंदव्वं पि ) पुद्गल द्रव्य भी (परमाणुव्वाण पिडो) परमाणुरूप पुद्गल द्रव्योका समूहरूप स्कंध है । [ २६५ विशेषार्थ - जीवके साथ इन मन वचन कार्यकी एकता व्यवहार नयेसे माने जानेपर भी निश्चयनयसे ये तीनों ही परम चैतन्यरूप प्रकाशकी परिणति से भिन्न हैं । वास्तवमे ये परमाणुरूप पुद्धलोके बने हुए स्कंधरूप वर्गणाओ से बनकर पुद्गलद्रव्यमई ही है। - ५५ भावार्थ - पहली गाथामे जिस वातको दिखलाया है उसीका यहां स्पष्ट कथन है कि जब निश्चय नयसे आत्माके निज परम स्वभावकी तरफ दृष्टि डालते हैं तो वहा शुद्ध ज्ञानानंदमई आत्माका ही राज्य है । वहा न क्षयोपशम ज्ञान है, न क्षयोपशम वीर्य है, न मोहका उदय है, न नामकर्मका उदय है जिनके कारण भाव मन, भाव वचन व भाव काय योग काम करते है और न वहा पुद्गलीक मनोवगणाओंसे बना मन है, न भाषा वर्गणाओसे बना वचन है, 'नमाहारक वर्गणासे बना हुआ औदारिक, वैक्रियिक, आहारक शरीर है, न तैजस वर्गणासे बना हुआ तैनस शरीर है और न कार्माण वर्गणाओंसे बना हुआ कार्माण शरीर है । अतएव मैं मन 1
SR No.009946
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 02 Gneytattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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