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________________ २५४] श्रीप्रवचनसारटीका। तप और सम्यक् वीर्यरूपी पांच प्रकारके आचारमें अपनी आत्माको तथा दूसरे शिष्यों को लगाते हैं वे मुनि आचार्य हैं उनको ध्याना चाहिये। जो रयणत्तयजुतो णिच घम्मोवएसणे जिरदो । सो उवझाओ अप्पा जदिवरवसहो णमो तस्स ॥ भावार्थ-जो रत्नत्रयसे युक्त हैं, नित्य धर्मोपदेश देनेमें लीन है, यतियोंमें श्रेष्ठ हैं वह आत्मा उपाध्याय है उसको नमस्कार हो। दसणणाणसमग म मोक्खस्स जो हु चारित्त । साधयदि णिच्च सुद्ध साहू स मुणो णमो तस्स ॥ भावार्थ-जो सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान सहित चारित्र रूप मोक्षके मार्गको नित्य शुद्ध रूपसे साधन करते हैं वह मुनि साधु हैं उनको नमस्कार हो । इस तरह पांच परमेष्ठी परम हितकारी हैं । इनकी यथायोग्य भक्ति करना शुभोपयोग है। ___ अनुकम्पाका स्वरूप स्वयं श्री कुन्दकुन्द महारानने पंचास्तिकायमे इसतरह कहा है तिसिद व क्खिद वा दुहिर दग जो दु दुहिदमणो । पाडवादि तं किंवया तस्सेसा होदि अणुकम्पा ॥१३७॥ भावार्थ-जो कोई जीव प्यासा हो, भूखा हो, रोगादिसे दुःखी हो उसको देखकर जो कोई उसकी पीडासे आप दुःखी होता हुआ दमानी करके उस दुःखके दूर करनेकी क्रियाको प्राप्त होता है उसे पुरुषके यह अनुकम्पा होती है । वास्तवमें श्री देवगुरु शास्त्रकी भक्ति और दयाधर्ममे सर्व शुभोपयोग गर्मित है। यह शुभोपयोग राग सहित होनेसे मुख्यतासे पुण्य बंधका
SR No.009946
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 02 Gneytattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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