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श्रीप्रवचनसारटीका।
रूप द्रव्यका लक्षण पाया जाता है । इन दो प्रकारके सामान्यका खरूप ऐसा है। एक ही समयमें नाना व्यक्तियोमे पाया जानेवाला जो अन्वय उसको तिर्यक् सामान्य कहते है । यहां यह दृष्टांत है कि जैसे नाना प्रकार सिद्ध जीवोमें यह सिद्ध है, यह सिद्ध हैं ऐसा जोड़ रूप एक तरहके स्वभावको रखनेवाला सिद्धकी जातिका विश्वास है-इस एक जातिपनेको तिर्यक् सामान्य कहते है तथा भिन्न २ समयोमें एक ही व्यक्तिका एक तरहका ज्ञान होना सो अवंता सामान्य कहा जाता है । यहां यह इप्टात है कि जैसे जो कोई केवलज्ञानकी उत्पत्तिके समय मुक्तात्मा है दूसरे तीसरे आदि समयोमे भी वही है ऐसी प्रतीति होना सो उर्वता सामान्य है। अथवा दोनो सामान्यके दो दूसरे दृष्टात है-जैसे नाना गौके शरीरोमे यह गौ है, यह गौ है ऐसी गो जातिकी प्रतीति होना सो तिर्यग्सामान्य है । तथा जो कोई पुरुष वालकुमारादि अवस्थाओमें था सो ही यह देवदत्त है ऐसा विश्वास सो उर्ध्वता सामान्य है।
(दव्याणि) द्रव्य सब (गुणप्पगाणि) गुणमई (भणिदाणि) कहे गए हैं । जो द्रव्यके साथ अन्वयरूप रहे अर्थात् उसके साथ साथ वते वे गुण होते हैं-ऐसा गुणका लक्षण है। जैसे सिद्ध जीव द्रव्य है सो अनन्तज्ञान सुख आदि विशेष गुणोसे तथा अगुरु लघुक आदि सामान्य गुणोंसे अभिन्न है- अर्थात् ये सामान्य विशेष गुण सिद्ध आत्माके साथ सदा पाए जाते हैं तैसे ही सर्व द्रव्य अपने२ सामान्य विशेष गुणोसे अभिन्न हैं इसलिये सब द्रव्य गुणरूप होते हैं।
(पुणो) तथा (तेहि पजाया) उन्ही पूर्वमे कहे हुए लक्षण