SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 26
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ द्वितीय खंड। अपनेको भिन्न अलकता है। इस सम्यक्तके विपयभूत पदार्थमालिकाको कहने हुए आचार्यने उन साधुओको द्रव्यभावसे नमन करके जिन्होंने सम्यक सहित चारित्रका यथार्थ पालन किया है उन साधुओंके द्वारा प्राप्त धर्मोपदेशको चित्तमे धारण किया है । आचार्य उसी उपदेशमें तन्मई होकर संक्षेपसे जीवादि पदार्थीका व्याख्यान करने है । हम पाठकोको भी योग्य है कि हम अपने उपयोगको सब तरफसे सींचकर इसी ज्याग्यानके विचारमे तन्मय करें तब हमको भी यथार्थ बोध होगा और हमारे भीतर भी वही भाव झलकेगा जो श्री कुढकुंद गहाराजके अंतग्गमें उन सूत्रोंके व्याख्यानकालमें था। विना एकाग्र भावके ज्ञानका विकाश नहीं होता है ॥ १ ॥ उत्थानिका-आगे पदार्थके द्रव्य गुण पर्याय स्वरूपको कहते है:अत्यो पलु दव्यमओ, दन्याणि गुणप्पगाणि भणिदाणि । तेहिं पुणो पज्जाया, पज्जयमृदा हि परसमया ॥२॥ अर्थ: मा द्रव्यमयो अध्याणि गुणामकामि भणितानि । नु पुन पर्यायाः पर्ययदा हि परसगयाः ॥ २ ॥ सामान्यार्थ-निश्चयने पदार्थ द्रव्य स्वरूप है। द्रव्य गुण स्वरूप कहे गए है। उन द्रव्य व गुणोंके ही परिणमनसे पर्यायें होती है । जो पर्यायोमे मोही है चे ही निश्चयसे परसमय रूप अर्थात् मिथ्याटष्टि हैं। ___अन्वय सहित विशेपार्थ-(ग्वल) निश्रयसे (अत्थो) ज्ञानका विषयभूत पदार्थ ( द्रव्यमओ) द्रव्यमई होता है। क्योंकि वह पदार्थ तिर्यक् सामान्य तथा ऊर्द्धता सामान्यमई द्रव्यसे निप्पन्न होता है अर्थात् उसमें तिर्यक सामान्य और ऊर्द्धता. सामान्य
SR No.009946
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 02 Gneytattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy