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श्रीप्रवचनसारटीका। इस तरह नर नारक आदि पर्यायोके साथ परमात्माका विशेष भेद कथन करते हुए पहले स्थलमें तीन गाथाएं पूर्ण हुई।
उत्थानिका-पूर्वमें कहे प्रमाण आत्माका नर, नारक आदि पर्यायोके साथ भिन्नताका ज्ञान तो हुआ, अब उनके संयोगका कारण कहते है
अप्पा उपयोगप्पा उवओगो णाणदंसगं भणिदो। सो हि सुहो असुहो वा उवयोगो अप्पणो हवदि ॥६क्षा आत्मा उपयोगात्मा उपयोगी जानदर्शन भणितः । स हि शुभोऽशुभो वा उपयोग आत्मनो भवति ॥६६॥
अन्वय सहित सामान्यार्थ --(अप्पा) आत्मा (उवओगप्पा) उपयोग स्वरूप है, (उपओगों) उपयोग (णाणदसणं ) ज्ञानदर्शन (भणिदं) कहा गया है। (सो हि अप्पणो उवओगो) वही आत्माका उपयोग (सुहो वा असुहो) शुभ या अशुभ (हवदि) होता है।
विशेषार्थ-चैतन्यके साथ होनेवाला जो कोई परिणाम उसको उपयोग कहते है उस उपयोगमई यह आत्मा है । वह उपयोग विकल्प सहित ज्ञान व विकल्प रहित दर्शन होता है, ऐसा कहा गया है। वही ज्ञानदर्शनोपयोग जब धोनुरागरूप होता है तब शुम है और जब विषयानुरागरूप होता है व द्वेष मोहरूप होता है तब अशुभ है। गाथामे वा शब्दसे शुभ अशुभ अनुरागसे रहित शुद्ध उपयोग भी होता है ऐसा तीन प्रकार आत्माका उपयोग होता है। ___भावार्थ-इस गाथामें आचार्यने यह कहा है कि जिन कर्मोके उदयसे निश्चयसे शुद्ध परन्तु अनादि कर्मवंधसे अशुद्ध इस जीवके