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२३८] श्रीप्रवचनसारटोका । ।
इस तरह "एवं सपदेसेईि सम्मग्गो" इत्यादि आठ गायाओंसे सामान्य भेद भावनाका अधिकार समाप्त हुआ। ___अयानंतर इक्यावन गाथा तक विशेष भेदकी भावनाका अधिकार कहा जाता है । यहां विशेष अन्तर अधिकार चार हैं। उन चारोंके बीचमें शुद्ध आदि तीन उपयोगकी मुल्यतासे ग्यारह गाथानों तक पहला विशेष अन्तर अधिकार प्रारम्भ किया जाता है, उसमें चार स्थल हैं । पहले स्थलमें मनुप्यादि पर्यायोंके साथ शुद्धात्म स्वरूपका भिन्नपना बतानेके लिये "अस्थित्तणिच्छदस्सरहिं" इत्यादि यथाक्रमसे तीन गाथाएं हैं। उसके पीछे उनके संयोगका कारण " अप्पा उवओगप्पा " इत्यादि दो गाथाएं हैं। फिर शुभ, अशुभ, शुद्ध उपयोग तीनकी सूचनाकी मुख्यतासे "नो जाणादि जिणिदे" इत्यादि गाथा तीन हैं। फिर मन वचन कायका शुद्धात्माके साथ भेद है ऐसा कहते हुए " पाहं देहो" इत्यादि तीन गाथाएं हैं । इस तरह ग्यारह गाथाओंसे पहले विशेष अंतर अधिकारमें समुदाय पातनिका है।
उत्यानिका-आगे फिर भी शुद्धात्माकी विशेष भेद भावनाके लिये नर नारक आदि पर्यायका स्वरूप जो व्यवहार जीवपनेका हेतु है दिखाते हैं:
अस्थित्तरि-स्स हि अत्थस्सत्यंतरम्मि संभूदो। अत्यो पर: सो संठागादिप्पभेदेहिं ।। ६३ ।। अस्तित्त्वनिश्चितस्य ह्यर्थत्वार्थान्तरे संभूतः ।
अर्थः पर्यायः स नत्यानादि प्रभेदैः ॥ ६३ ॥ ___ अन्वय सहित सामान्यार्थः-(अत्थित्तणिच्छिदस्स ) माने