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द्वितीय खंड । [२२३ व्यापारसे रहित परमात्मा द्रव्यसे भिन्न बल प्राण है। अनादि और अनन्त स्वभावमई परमात्मा पदार्थसे विपरीत आदि और अंतसहित आयु प्राण है। श्वासोच्छ्वासके पैदा होनेके खेदसे रहित शुद्धात्मतत्वसे विपरीत श्वासोच्छास प्राण है। इस तरह आयु, इंद्रिय, बल, श्वासोच्छ्वासके रूपसे व्यवहारनयसे जीवोके चार प्राण होते हैं। ये प्राण शुद्ध निश्चयनयसे जीवसे भिन्न हैं ऐसी भावना करनी योग्य है।
भावार्थ-इद्रिय, बल, आयु, आनपान ये चारों ही प्राण संसारी जीवमे व्यवहारसे हैं इसलिये यह संसारी जीव इन प्राणोंसे किसी शरीरमें जीता रहता है। ये प्राण शुद्धात्माके शुद्ध ज्ञानदर्शनमई स्वभावसे भिन्न हैं । मैं निश्चयसे इन प्राणोंसे भिन्न हूं। ऐसी भावना परमकल्याणकारिणी है ॥ १६ ॥
उत्थानिका-आगे कहते है कि भेद नयसे ये प्राण दस तरहके होते हैं:पंचवि इन्द्रियपाणा मणवचिकाया य तिणि वलपाणा। आणप्पाणप्पाणो आउगपाणेण होंति दसपाणा ॥ ५ ॥ पंगपि इन्द्रियमाणाः मनवचनकाया च त्रीणि बलप्राणाः । आनानप्राणाः आयुप्राणेन भवति दश प्राणाः ॥५७॥
अर्थ-स्पर्शन, रसना, ध्राण, चक्षु और कर्ण ये पांच इंद्रियः प्राण है । मन, वचन, काय ये तीन बल प्राण हैं । श्वासोश्वास तथा आयु प्राणको लेकर दश प्राण होते हैं । ये दसो प्राण चिदानन्दमई एक स्वभाव रूप परमात्मासे निश्चयसे भिन्न हैं ऐसा जानना चाहिये, यह अभिप्राय है।