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________________ अपने अपने प्रदेशका अन्य पदार्थों हुआ है ( द्वितीय खंड। [२२१ हुआ (लोगो) यह लोकाफाश (सपदेसेहि समग्गो) अपने ही असंख्यात प्रदेशोसे पूर्ण है और (अद्वेहिं णिट्ठिदो) सहज शुद्धबुद्ध एक स्वभावरूप परमात्म पदार्थको आदि लेकर अन्य पदार्थोंसे भरा हुआ है अथवा अपने अपने प्रदेशोको रखनेवाले पदार्थोसे भरा, हुआ है (जो त जाणदि) जो कोई इस ज्ञेय रूप लोकको जानता है (जीवो) सो जीव पदार्थ है तथा वह ( पाणचदुक्काहिसबहो). ससार अवस्थामे व्यवहारसे चार प्राणोंका सम्बन्ध रखता है। . विशेषार्थ-निश्चयसे यह जीव शुद्ध ज्ञान दर्शन स्वभावधारी है इसलिये यह ज्ञान भी है और ज्ञेय भी है। शेप सब पदार्थ मात्र जेय ही हैं इस तरह ज्ञाता और ज्ञेयका विभाग है। तथा यद्यपि निश्चयसे यह स्वयसिद्ध परम चैतन्य खभावरूप निश्चय प्राणसे जीता है तथापि व्यवहारसे अनादिसे कर्मबन्धके वशसे आयु आदि अशुद्ध चार प्राणोसे भी सन्बन्ध रखता हुआ जीता है । यह चार प्राणोका सम्बन्ध शुद्ध निश्चयनयसे जीवका खरूप नहीं है, ऐसी भेद भावना समझनी चाहिये यह अभिप्राय है । भावार्थ-इस गाथामे आचार्यने यह बताया है कि यह अखंड असख्यात प्रदेशी लोकाकाश सब जगह अन्य पाच द्रव्योसे भरा हुआ है, कोई प्रदेश आकाशका ऐसा नहीं है जहां जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, काल न पाए जावे-ये पाच द्रव्य एक स्थलमें रहते हुए भी अपने२ प्रदेशोसे भिन्न२ रहते हैं तथा यह लोक अकत्रिम व अविनाशी है और अनन्त आकाशके मध्यमे ठहरा हुआ है। चैतन्य गुणधारी आत्मा अपनेको भी जानता है और इस लोकके सर्व पदार्थोको भी जानता है इस लिये यह आत्मा ज्ञाता भी है ज्ञेय
SR No.009946
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 02 Gneytattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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