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द्वितीय खंड |
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कथनकी मुख्यता है फिर " पाडव्भवदि य अण्णो " इत्यादि दो गाथाओ द्रव्यकी पर्यायके निरूपणकी मुख्यता है । फिर " 1 हवदि जदि सहवं" इत्यादि चार गाथाओमे सत्ता और द्रव्यका अभेद है इस सम्बन्धमे युक्तिको कहते है । फिर "जो खलु दन्त्रसहाओ" इत्यादि सत्ता और द्रव्यमे गुण गुणी सम्बन्ध है ऐसा कहते हुए पहली गाथा, द्रव्यके साथ गुण और पर्यायोका अभेद है इस मुख्यतामे " णत्थि गुणोति य कोई" इत्यादि दूसरी ऐसी दो स्वतंत्र गाथाए है | फिर द्रव्यका द्रव्यार्थिक नयसे सत्का उत्पाद होता है तथा पर्यायार्थिक नयसे असत्का उत्पाद होता है इत्यादि कथन करते हुए " एवं विहं " इत्यादि गाथाएं चार है । फिर " अतिथत्ति य" इत्यादि एक सूत्रसे सप्तभगीका व्याख्यान है। इस तरह समुदायसे चौनीस गाथाओंसे और आठ स्थलोसे द्रव्यका निर्णय करते है ।
आगे सम्यक्त्वको कहते है -
गाथा-
तम्हा तस्स णमाइ, किच्चा णिवपि तं मणो होज । वोच्छामि संगहादो; परमहविणिच्छनाधिगनं ॥ १ ॥
संस्कृत छाया
तरमात्तस्य नमस्या, कृत्वा नित्यमपि तन्मना भूत्वा । पश्यामि सग्रहात् परमार्थविनिश्चयाधिगम ॥ १ ॥
सामान्पार्थ. - इसलिये उस सानुको नमस्कार करके तथा नित्य ही उनमें मन लगाकर संक्षेपसे परमार्थको निश्चय करानेवाले सम्यक्त भावको अथवा सम्यक्तके विश्यभूत पदार्थको कहूंगा ।