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श्रीप्रवचनसारटीका ।
आगे इस द्वितीय अधिकार की सूची लिखते हैं
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इसके आगे " सत्ता संबंधेदे " इत्यादि गाथा सूत्रसे जो पूर्वमे संक्षेपसे सम्यग्दर्शनका व्याख्यान किया था उसीको यहां विषयभूत पदार्थों के व्याख्यानके द्वारा एकसो तेरह गाथाओ में विस्तारसे व्याख्यान करते हैं । अथवा दूसरी पातनिका यह है कि पूर्व में जिस ज्ञानका व्याख्यान किया था उसी ज्ञानके द्वारा जाननेयोग्य पदार्थोको अब कहते है । यहां इन एकसौ तेरह गाथाओं के मध्यमे पहले ही " तम्हा तहम णमाइ " इस गाथाको आदि लेकर पाठके क्रमसे ३३ पैतीस गाथाओ तक सामान्य ज्ञेय पदार्थका व्याख्यान है । उसके पीछे " दव्व जीवमजीवं " इत्त्यादि १९ उनीस गाथाओ तक विशेष ज्ञेय पदार्थका व्याख्यान है । उसके पीछे " रूपदेसेहि रुमग्गो लोगो " इत्यादि आठ गाथाओ तक सामान्य भेदकी भावना है फिर “अत्थित णिच्छिदस्त्र हि” इत्यादि ५१ इक्यावन गाथाओतक विशेष भेटकी भावना है । इस तरह इस दूसरे अधिकार मे समुदाय पातनिका है । अब यहां सामान्य ज्ञेयके व्याख्यानमे पहले ही नमस्कार गाथा है फिर द्रव्य गुण पर्यायकी व्याख्यान गाथा है । तीसरी स्वसमय परसमयको कहनेवाली गाथा है । चौथी द्रव्यकी सत्ता आदि तीन लक्षणको सूचना करनेवाली गाथा है - इस तरह पीठिका नाम के पहले स्थलमे स्वतंत्ररूप से गाथाए चार हैं। उसके पीछे " भावो हि सहावो " इत्यादि चार गाथाओ तक सत्ताके लक्षण के व्याख्यानकी मुख्यता है । फिर ' णभवो भंग दिठीण" इत्यादि तीन गाथाओतक उत्पाद व्यय श्रव्य लक्षणके