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________________ said wit मामल संघी मोक्षाज ६ ॐ श्री कुंदकुंदस्वामी विरचित श्री प्रवचनसारटीका । द्वितीय खण्ड अथवा ज्ञेयतत्वदीपिका । दोहा - प्रथम नमो श्री आदिको अन्त नाम महावीर | तीर्थकर चौबीस ये, वर्तमान जुगवोर ॥ १ ॥ प्रगटायो जिन धर्मको, सम्यक् सुखदातार । भविजन पाच सुमार्गको, तिरे भवोदधि खार ॥ २ ॥ तिनकी वाणो रसभरी, आतम अनुभवकार । वन्दो मन वचकायले, पाऊ ज्ञान उदार ॥ ३ ॥ वृषभसेनको आदि दे, गौतम गणधर सार | भद्रवाहु श्रुतकेवली, कुंदकुद गुणधार ॥ ४ ॥ उमास्वामि महाराजवर, भद्र समन्त महान पूज्यपाद इत्यादि गुरु, वंदूं सिद्ध पर सुखके धनी, सत्य कृतारथ सूर | परमातम पावन परम, वढू त हो दूर ॥ ६ ॥ श्रीधरको आदि ले, वीस विदेह सुनाथ | राजत प्रगायत धरम, नमहं जोड जुग हाथ ॥ ७ ॥ पोड़श कारण भावना, दशलक्षण वर धर्म | रत्नत्रय हिंसा रहित, नमहुं धर्म हर कर्म ॥ ८ ॥ कार-वैशाख वदी ८० १९८० ता० ८-४-१९२३ सवेरा होते ह ते । उपजै ज्ञान ॥ ५ ॥
SR No.009946
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 02 Gneytattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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