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________________ २१८ ] श्रीप्रवचनसारटोका । फिर आगे | इस तरहका चर्तन यदि मानें तो यह तिर्यक् प्रचय ही ऊर्ध्वप्रचय हो जायगा । उर्ध्व प्रचयमें सर्व द्रव्यको क्रमसे वर्तना मानना चाहिये । सर्व प्रदेशोके एक साथ विस्ताररूप समूहको तिर्यक् प्रचय कहते हैं । यदि असंख्यात प्रदेशी कालके प्रदेश एक साथ वर्तन करे तो कालको और द्रव्योकी तरह तिर्यक् प्रचय प्राप्त हो जायगा । सो ऐसा नहीं है । कालको एक प्रदेशमात्र माननेसे ही समय पर्याय उत्पन्न होगी। क्रमवर्ती समयोके समुदायको ऊर्ध्व प्रचय कहते हैं। कालके उर्ध्व प्रचयसे ही और द्रव्योका ऊर्ध्वप्रचय माना जाता है । , पांडे हेमराजजी ने भी अपनी टीकामें ऐसा लिखा है कि जो अखंड काल द्रव्य होवे तो समयपर्याय उत्पन्न नहीं हो सक्ता । क्योकि पुद्गल परमाणु जब एक कालाणुको छोड़कर दूसरी कालाणुप्रति मंदगतिसे जाता है तब उस जगह दोनो कालाणु जुदे जुदे होनेसे समयका भेद होता है जो एक अखढ लोकपरिमाण काल द्रव्य होवे तो समय पर्यायकी सिद्धि किस तरह हो सकती है । यदि कहो कि "काल द्रव्य लोकपरिमाण असंख्यात प्रदेशी है उसके एक प्रदेशप्रति जब पुद्गल परमाणु जायगा तव समयपर्यायकी सिद्धि हो जायगी ?" तो उसका उत्तर यह है कि ऐसा कहने से बड़ा भारी दोष आवेगा वह इस प्रकार है - एक अखंड काल द्रव्यके एक प्रदेशसे दूसरे प्रदेश प्रति जानेसे समयपर्यायका भेद नहीं होता, क्योंकि अखंड द्रव्यसे एक प्रदेशमें समयपर्याय नही हो सक्ती | सभी जगह समय पर्याय होना चाहिये । कालकी एकतासे समयका भेद नहीं हो सक्ता । इस लिये ऐसा है कि सबसे सूक्ष्म
SR No.009946
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 02 Gneytattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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