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द्वितीय खंड |
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जब कालाणु द्रव्य एक प्रदेश मात्र भिन्नर होगा तब ही एक पुद्गलका परमाणु एक कालाणुसे दूसरे कालाणुपर जायगा और तब ही समयपर्याय उत्पन्न होगी। दो कालाणु जुदे जुदे होनेसे ही समयपर्यायका भेद सिद्ध होगा। जो लोकाकाशप्रमाण अखण्ड एक कालद्रव्य होवे तो समयपर्यायकी सिद्धि कैसे हो सक्ती है ? यदि कोई कहे कि कालद्रव्य लोकाकाश प्रमाण असख्यान प्रदेशी है उसके एक प्रदेशसे दूसरे प्रदेशपर जब पुद्गल परमाणु जायगा तब समय पर्यायकी सिद्धि हो जायगी ? तो उसका उत्तर यह है कि ऐसा नही होता क्योकि एक प्रदेशरूप वर्तनेका सर्व प्रदेशों में वर्तनेसे विरोध है " एकदेशवृत्तेः सर्ववृत्तित्त्वविरोधात् " अर्थात् जब एक प्रदेशमात्र में बर्तन हुआ और शेषमें न हुआ तब काल द्रव्यका बर्तन ही न बना तथा अखंड कालद्रव्यमे परमाणुके जानेका नियम नहीं रहेगा कि वह इतनी दूर जावे क्योकि प्रदेशोकी भिन्नता नही है। इससे समय पर्यायका भेद नहीं होसकेगा, क्योंकि काल पदार्थका जो सूक्ष्म परिणमन है वही समय है वह भेद भिन्न २ कालाणुओके माननेसे ही सिद्ध हो सक्ता है, एकतासे नही । जैसा श्री अमृतचद्रजीने कहा है कि “सर्वस्यापि हि कालपदार्थस्य य. सूक्ष्मो वृत्यंश स समयो, न तत्तदेकदेशस्य " अर्थात् सर्व ही काल पदार्थका जो सूक्ष्म वर्तन है वह समय है उसके एक देशके वर्तनसे समय नही हो सक्ता । दूसरा दोष यह होगा कि जो तिर्यक् प्रचय है वही ऊर्ध्व प्रचय हो जायगा । जैसे आकाश तिर्यक् प्रचय है वैसे कालके तिर्यक् प्रचय होगा क्योंकि वह कालद्रव्य पहले एक प्रदेशमें वर्तेंगा फिर दूसरेमें फिर तीसरे में