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द्वितीय खंड |
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( अत्थीदो अत्यंतर भूदम् ) वह उत्पाद व्यय ध्रौव्य रूप अस्तित्त्व से अर्थातरभूत अर्थात् भिन्न होजायगा क्योकि उसमे एक प्रदेश भी नही है जिससे उसकी सत्ताका बोध हो ।
विशेषार्थ. - जैसा पूर्व सूत्रोमे कहा है उस प्रकार काल पढार्थमे उत्पाद व्यय धौव्यरूप अस्तित्व विद्यमान है । यह अस्तित्व प्रदेशके बिना नही घट सक्ता है। जो प्रदेशवान है वही काल पदार्थ है । कोई कहे कि कालद्रव्य के अभाव मे भी उत्पाद व्यय धौव्य घट जायगा ? इसका समाधान करते है कि ऐसा नही हो सक्ता । जैसे अगुली द्रव्यके न होते हुए वर्तमान वक्र पर्यायका जन्म और भूतकालकी सीधी पर्यायका विनाश तथा दोनोंके आधाभूतका धौव्य किसका होगा ? अर्थात् किसीका भी न होगा तैसे ही कालद्रव्य के अभाव मे वर्तमान समय रूप उत्पाद व भूत समय रूप विनाश व दोनोंका आधार रूप ध्रौव्य किसका होगा ? किसीका नही होसकेगा । यदि सत्तारूप पदार्थको न माने तो यह होगा कि विनाश किसी दूसरेका उत्पाद किसी अन्यका व घ्रौव्य किसी औरका होगा | ऐसा होते हुए सर्व वस्तुका स्वरूप विगड जायगा । इसलिये वस्तुके नाशके मयसे यह मानना पडेगा कि उत्पाद व्यय धव्यका कोई भी एक आधार है । वह इस प्रकरणमे एक प्रदेश मात्र कालाणु पदार्थ ही है । वहा यह तात्पर्य समझना कि भूत अनन्त कालमे जितने कोई सिद्ध सुखके पात्र हो चुके हैं व भविष्यकाल मे अपने ही उपादानसे सिद्ध व स्वय अतिशयरूप इत्यादि विशेषणरूप अतीद्रिय सिद्ध सुखके पात्र होवेंगे वे सब ही काल लब्धिके वशसे ही हुए हैं व होगे । तौ भी