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________________ द्वितीय खंड । [२११. कारण पुद्गल परमाणुका हिलना है अर्थात् एक कालाणुसे निकटवर्ती कालाणुपर आना है। समय पर्याय कालद्रव्यके विना माने नहीं हो सक्ती है । जैसे आत्माको ध्रौव्य मानते हुए ही उसमें देव पर्यायका नाश और मनुष्य पर्यायका उत्पाद एक समयमें विग्रह गतिकी अपेक्षा मनुष्य आयु कर्मके उदयके कारण सिद्ध होते हैं तैसे ही कालद्रव्यको मानते हुए ही उसमें पूर्व समय पर्यायका नाश और वर्तमान पर्यायका उत्पाद सिद्ध होसक्ता है। वही पर्याय उपजे वही नष्ट हो यह असंभव है। किसी आधाररूप द्रव्यके होते ही उसमें अवस्थाएं होसक्ती हैं । जैसे सुवर्ण द्रव्यको मानते हुए ही सोनेकी दशा पलट सक्ती है, वह कुंडलसे कंकणकी पर्यायमें बदला जा सकता है अर्थात् सुवर्णके स्थिर रहते हुए कुंडल पर्यायको नाशकर कंकण पर्याय पैदा होती है । कुंडल पर्याय मात्रमें नाश और उत्पाद नही बन सक्ते। जब वह नाश होगा तब कुंडलका जन्म नहीं होगा । सुवर्णके रहते हुए ही जब कुन्डल नष्ट होता है तब कंकण पैदा होता है। वास्तवमें अन्वयरूपसे वर्तनेवाले सुवर्णके स्थिर होतेहुए ही उसमें दो भिन्नर समयोंकी अपेक्षा दो भिन्न पर्यायें होसक्ती हैं। एक क्षणमें तो एक ही पर्याय झलकेगी, दो नहीं रह सक्ती क्योंकि वर्तमानकी पर्याय पूर्व पर्यायको नाश कर ही प्रगट हुई है । वास्तवमें देखा जाये तो हरएक द्रव्य अपने भीतर अपनी अनन्त पर्यायोको शक्ति रूपसे रखता है उनमें से एक क्षणमें एक पर्याय प्रगट होती है तब और सब मात्र शक्ति रूपसे रहती हैं । पर्यायोंका तिरोभाव आर्विभाव हुआ करता हैजो नष्ट हुई उसका तिरोभाव जो प्रगटी उसका आर्विभाव होता
SR No.009946
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 02 Gneytattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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