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________________ २१०] श्रोप्रवचनसारटोका । वही नाश हो । यदि कहो कि समय पर्यायमें उत्सद व्यय क्रमसे होते है तो यह भी संभव नहीं है क्योकि समय अत्यन्त सुक्ष्म है उसके विभाग नहीं होते और न वह स्थिर रहना है। इसलिये जिसमें जत्र-वर्तमान समय पर्यायका उत्पाद होता है तब ही पूर्व समय पर्यायका व्यय होता है। इन दोनो अवस्थाओंमें वर्तनेवाला कोई अवश्य मानना पड़ेगा । सो ही वह समय पदार्थ है । उस काल द्रव्यके. मीतर एक ही वर्तनाके अंशमे दोनों उत्पाद और व्यय संभव हैं अर्थात जब काल द्रव्यने वर्तन किया तब पूर्व ममय पर्यायका नास होना ही नवीन समय पर्यायका उत्पाद होना होगया इस तरह सहजमें उत्पाद व्यय सिद्ध होगए। जब ऐसा है तब काल पदार्थ निरन्वय नहीं माना जासक्ता अर्थात् कालद्रव्य अन्वय रूपसे सदामानना पडेगा, क्योकि जो पूर्व और उत्तर समयोसे विशिष्ट होगा उसीमें ही एक समयमें एक साथ पूर्व समयका नाश व उत्तर समयका उत्पाद होगा। यदि कालद्रव्य स्वभावसे नाश व व्यय नहीं होवे तो धौव्य भी न होवे, क्योंकि जिसमे पर्यायोंका परिणमन होगा वही प्रौव्य होगा, तथा जो धौव्य होगा उसीमें परिणमन होगा। इन तीनोंका एक काल होना सिद्ध है इसलिये काल द्रव्यके ध्रौव्य होते हुए ही उसमें पूर्व समयका नाश और उत्तर समयका उत्पाद भले प्रकार सिद्ध होसक्ता है। ऐसा ही काल पदार्थका स्वभाव मिद्ध है अर्थात् वह काल द्रव्य पूर्व उत्तर समयकी अपेक्षा उत्पाद व्यय करता हुआ ही ध्रौव्य रहता है । इसीमे काल वास्तविक द्रव्य है । इस गाथामें भले अगर गल द्रव्यकी सिद्धि है तथा वृत्तिकार श्री अमृतचन्द्राचार्यने यहां भी यह स्पष्ट कर दिया है कि समय पर्यायका सहकारी
SR No.009946
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 02 Gneytattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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