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________________ द्वितीय खंड | २०६ आधारभूत परमात्म द्रव्यका धौव्य है । इसतरह द्रव्यकी सिद्धि है अथवा एक आत्मद्रव्यमे जिस समय मोक्ष पर्यायका उत्पाद है उस ही समय रत्नत्रयमई मोक्ष मार्गरूप पर्यायका नाश है परन्तु इन दोनोंके आधारभूत परमात्मद्रव्यका धौव्य है । इस तरह द्रव्यकी सिद्धि है । तैसे ही जिम काल द्रव्यकी जिस क्षण बर्तमान समयरूप पर्यायका उत्पाद है उसी काल द्रव्यकी पूर्व समयकी पर्यायका नाश है परन्तु इन दोनोंके आधाररूप अंगुली द्रव्यके स्थानमें कालाणु द्रव्यका ध्रौव्य है इस तरह काल द्रव्यकी सिद्धि है । / भावार्थ - इस गाथा की अमृतचद्र आचार्यकृत टीका भी बहुत उपयोगी है इसमे उसका सार यहा दिया जाता है, कि समय निश्चयसे काल पदार्थका वृत्यश अर्थात् वर्तनाका अश या पर्याय है । जब पुगलका परमाणु मंदगतिसे पूर्व कालाणुको छोडकर आगेकी कालाणुपर जाता है तब हम सहकारी कारणके निमित्तसे अवश्य कालाणु द्रव्यमे पूर्व समय पर्यायका नाश और वर्तमान समय पर्यायका उत्पाद होता है । संस्कृत शब्द हैं " समयोहि समयपदाI र्थस्य वृत्त्यंश तस्मिन् कस्याप्यवश्यमुत्पादप्रव्यसौ संभवत, परमाणोर्व्यतिपातोत्पद्यमानत्वेन कारणपूर्वत्वात् । " यदि कोई कहे कालाकी जरूरत नही है, उत्पाद और नाश समय पर्यायका ही होता है तो उसको विचारना चाहिये कि उस एक समय पर्यायके उत्पाद और नाश एक कालमें होते है कि क्रमसे होते हैं । यदि कहो कि एक कालमें एक साथ एक समय पर्यायके उत्पाद व्यय होते हैं तो यह बात ठीक नहीं है क्योकि एक समय पर्यायके भीतर दो विरुद्ध स्वभाव नही होसक्ते कि वही एक क्षणमे जन्मे .v 1
SR No.009946
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 02 Gneytattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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