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________________ द्वितीय खंड। [२०७ अर्थात् जब समयोको ध्यानमें लेकर ही ऊर्ध्व प्रचयका ज्ञान होता हैं तब यह स्वतः सिद्ध है कि अन्य द्रव्योंके ऊर्ध्व प्रचयको कालका ऊर्ध्व प्रचय सहकारी कारण है किन्तु काल द्रव्यके ऊर्च. प्रचयका ज्ञान करानेको कालके समय ही सहकारी कारण है इसलिये वही उपादान तथा वही निमित्त है । क्योंकि समय काल द्रव्यकी ही पोय हैं कालके सिवाय अन्य किसी द्रव्यकी पर्यायें नहीं हैं। ___यहां यह समझना चाहिये कि ऊर्ध्व प्रचयके भावके लिये ऐसा कहा गया है कि कालके ऊर्ध्व प्रचयके लिये काल ही उपादान य काल ही सहकारी कारण है। काल द्रव्यकी पर्याय जो समय है उसका उपादान कारण काल द्रव्य है किन्तु उस समय पर्यायका निमित्त कारण पुद्गल परमाणुका एक कालाणुसे दूसरे कालाणुपर मदतासे गमन है नैप्सा पहले कह चुके हैं। ____ कालमें कितनी समय पर्याय होती है इसकी कल्पनाके लिये परमाणुको कोई क्रियाकी आवश्यक्ता नहीं है। इसके लिये तो मात्र कालहीसे काम चल सक्ता है । जैसे और द्रव्योंकी पर्यायों के गिननेके लिये कालके समय कारण हैं वैसे कालके पर्यायोको गिननेके लिये कालके समय ही कारण हैं । इसलिये कालके उद्ये प्रचयके लिये कालको ही उपादान और निमित्त कहा गया है । भाव यह है कि सर्व द्रव्योमें उर्ध्व प्रचय और तिर्यक् प्रचय है, मात्र + काल द्रव्यमें तिर्यक् प्रचय नहीं है इसीसे-पाच द्रव्य अस्तिकाय हैं, साल अस्तिकाय नहीं है ॥५१॥ इसतरह सातवें स्थलमे स्वतंत्र दो माथाएं पूर्ण हुई।
SR No.009946
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 02 Gneytattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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