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________________ २०६ ] श्रीप्रवचनसारटोका । तियेक प्रचय है। सीढ़ीमें अनेक सीढ़ीयाँ ऊपर नीचे हैं, क्रम क्रमसे चली गई हैं । लम्बाई रूप हैं । इसको उच्च प्रचयका दृष्टान्त कहते हैं । कालद्रव्य एक प्रदेशवाला है इससे उसमें तिर्यक् प्रचय नही है । अन्य द्रव्य बहुप्रदेशी हैं। इससे उन प्रदेशोंके समुदायको तिर्यक् प्रचय कहते है। पुद्गलके स्कंध संख्यात, असंख्यात या अनेक प्रदेशी परमाणुओकी अपेक्षासे हैं, परमाणुमे मिलनशक्ति है इससे बहुप्रदेशी है । धर्म, अधर्म व एक जीव असंख्यात 1 प्रदेशी हैं। यद्यपि जीव संकोच विस्तार के कारण छोटे बडे शरीरप्रमाण रहते हैं तथापि असंख्यात प्रदेशोंके समूहसे अलग नहीं होते, आकाश अनन्त प्रदेशी है । एक ही समय में द्रव्योंके फैला - वका ज्ञान तिर्यक् प्रचयसे होता है । सब ही द्रव्य परिणमनशील हैं । उनमें क्रमसे पर्यायें होती रहती है, एक समय में एक पर्याय होती है पिछली नष्ट होजाती है। यदि तीन कालकी अपेक्षा अगली व पिछली पर्यायोका जोड़ अपने ध्यानमे लेवें तो अनंत पर्यायोका समूह बुद्धिमे झलकेगा, इस समूहको ऊर्ध्व प्रचय कहते हैं। कालके विना पांच द्रव्यों में ऊर्ध्वं प्रचय यद्यपि उन द्रव्योके ही उपादान कारणरूप परिणमनसे होता है तथापि उनका बोध काकी समय नामा पर्यायोंके द्वारा होता है । कालकी समय पर्यायें इसी सहकारी कारण से अन्य द्रव्योंकी पर्यायोका ज्ञान होता है । काल द्रव्यकी समय पर्यायोके समूहका जो ऊ प्रचय' है उसका उपादान कारण जैसे काल है वैसे उसका सहकारी कारण भी काल है। क्योंकि समय कालकी ही पर्याय है। 1
SR No.009946
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 02 Gneytattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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