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और केवलज्ञानादि प्रगटरूप अनन्त गुणोके आधारभूत, लोकाकाशप्रमाण शुद्ध असंख्यात प्रदेशोका जो प्रचय या समूह या समुदाय या राशि है उसको तिर्यक् प्रचय, तिर्यक सामान्य, विस्तार सामान्य या अक्रम अनेकान्त कहते है । यह प्रदेशोका समुदायरूप तिर्यक् प्रचय जैसे मुक्तात्मा द्रव्यमें कहा गया है तैसे कालको छोडकर अन्य द्रव्योंमें अपने अपने प्रदेशोकी संख्या के अनुमार यिक् प्रचय होता है ऐसा कथन समझना चाहिये । तथा समय समय वर्तनेवाली पूर्व और उत्तर पर्यायोकी सन्तानको ऊर्ध्व 'प्रचय, ऊर्ध्व सामान्य, आयत सामान्य या क्रम अनेकान्त
द्वितीय खंड |
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कहते है । जैसे मोतीकी मालाके मोतियोको क्रमसे गिना जाता है
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इसी तरह द्रव्यकी समय २ मे होनेवाली पर्यायाको क्रमसे गिना जाता है । इन पर्यायोके समूहको ऊर्ध्व सामान्य कहते है । यह सत्र द्रव्योमे होता है । किन्तु कालके सिवाय पाच द्रव्योकी पूर्व उत्तर पर्यायों का सन्तान रूप जो ऊर्ध्व प्रचय है उसका उपादान कारण त अपना अपना द्रव्य है परंतु कालद्रव्य उनके लिये प्रति समयमे सहकारी कारण है । परतु जो कालद्रव्यका समय सन्तान रूप ऊर्ध्व प्रचय है उसका काल ही उपादान कारण है और काल ही सहकारी कारण है । क्योकि कालसे भिन्न कोई और समय नहीं है । कालकी जो पर्यायें है वे ही समय है ऐसा अभिप्राय है ।
भावार्थ - एक समयमे ही विना क्रमके अनेक प्रदेशोके समूहका बोध करानेवाला विस्तार तिर्यक् प्रचय है । अनत समयोमे क्रमसे होनेवाली पर्यायोकी राशिका बोध करानेवाला ऊर्ध्व प्रच है । जैसे एक मैदान है और एक सीढ़ी है। मैदानकी चौड़ाई
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