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द्वितीय खंड |
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उसे प्रदेश कहते हैं उसमें यह ताकत है कि अनन्त परमाणु छुटे हुए उतनी ही जगहमे आसते है इतना ही नही सूक्ष्म अनेक स्कंध भी समासक्ते हैं । उस परमाणुमे वाधा डालनेकी शक्ति नही है क्योकि परमाणु सूक्ष्मसूक्ष्म होता है । लोकाकाशके प्रदेश असख्यात हैं तथापि उसमें असख्यात कालाणु, धर्मद्रव्य, अधर्म द्रव्य, अनन्तानन्त जीव तथा उससे मी अनतगुणे पुद्गल समाए हुए है और सुखसे कार्य करते है । यह आकाशकी एक विलक्षण अवकाशदान शक्ति है तथा सूक्ष्म स्कध व परमाणुओमे भी यथासम्भव अवकाशदानशक्ति है। यह बात प्रत्यक्ष प्रगट है कि प्रकाशके पुद्गल स्थूल सूक्ष्म जातिके है। एक कमरेके आकाशमे यदि एक प्रकाश फैल जावे तो भी वहां हजारो दीपक जलाए जासक्ते हैं और उन सबका प्रकाश उतने ही कमरेमे समा जाता है । उस कमरेके आकाशने तथा स्थूल सूक्ष्म प्रकाशने अन्य प्रकाशके आने में कोई बाधा नही डाली । ऐसे प्रकाशसे गर्दा डालें तो भी समा जायगी । अनेक छोटे भी जगह मिल जगह मिल जायगी । मनुष्य - स्त्री तौ भी अवकाश मिल जायगा । यह कमरेका दृश्य ही इस बातका समाधान कर देता है कि लोकाकाशमे अनन्तानत द्रव्योंके अवकाश पानेमे कोई बाधा नहीं है । यद्यपि आकाश अखड है तथापि उसके पदार्थोकी अपेक्षा खंड कल्पना किये नासक्ते है जैसे घटाकाश, पटाकाश आदि । वृत्तिकारने युगल मुनियोको ध्यान मग्न अवस्था में दिखाया है कि उनके हरएकका क्षेत्र अलग २ ही माना जायगा तब ही वे दो भिन्न २ दीखेंगे | उन दोनोका एक क्षेत्र
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भरे हुए कमरेमे
जन्तु घूमे उनको पुरुष बैठे उठे