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द्वितीय खंड।
[२०१ एक समयमें १४ राजू नासक्ता है तथापि उस समयके भाग नहीं हो सक्ते। जितना समय परमाणुको निकटके कालाणुपर आनेमें लगता है उतना ही समय उसको १४ राजू जानेमें लगता है। यह परमाणुकी विलक्षण शक्ति है। जैसे एक आकाशके प्रदेशकी यह विलक्षण शक्ति है कि एक परमाणुसे व्याप्त होनेपर भी अनंत अन्य परमाणुओंको स्थान दे सक्ता है और इस प्रदेशके अंश नहीं होते हैं वसे समयके अंश नहीं होसक्ते हैं।
यह बात पहले भी कही गई कि कालाणुओको भिन्न २ माननेपर ही समय पर्याय होसक्ती है। मिन्न २ कालाणुओके होते हुए एक कालाणु परसे दूसरेपर जाते हुए समय पर्याय प्रगट होनी है। एक अखड लोकाकाग प्रमाण काल द्रव्य माननेसे नियमित गतिका अभाव होनेसे समय पर्याय नही होसक्ती । जैन आगममें जो काल द्रव्यका कथन है उसको अच्छी तरह निश्चय' करके यह काल अनादि अनन्त है ऐसा जानकर तथा अपने आत्माको अनादि कायसे संसारवनमें भटकता मानकर अब इसको मोक्ष मार्गमें चलानेके लिये निज शुद्धात्माका श्रद्धान, ज्ञान व अनुभव कराना चाहिये जिससे यह निज परमात्मस्वभावको पाकर कृतकृत्य और सिद्ध होजावे, यह अभिप्राय है ।। ४९ ॥
इस तरह कालके व्याख्यानकी मुख्यतासे छठे स्थलमे दो गाथाएं पूर्ण हुई।
उत्थानिका-आगे जिसका पहले कथन किया है उस प्रदेशका स्वरूप कहते है:
आगासमणुणिविट्ठ आगासपदेससण्णया भणिदं । । सव्वेसिं च अणूणं सकादि तं देदुमवकासं॥ ५० ॥