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________________ द्वितीय खंड | [ gee जायगा वह कालद्रव्य नामा पदार्थ है । यद्यपि यह समय पर्याय 1 पूर्वकालकी और उत्तरकालकी समयोकी संतानकी अपेक्षा सख्यात असंख्यात तथा अनन्त समय रूप है तथापि वर्तमानकालका समय उत्पन्न होकर नाश होनेवाला है, किन्तु भो पूर्वमे कहा हुआ द्रव्यकाल है यह तीनो कालोमे स्थाई होनेसे नित्य है । इस तरह का द्रव्यको पर्यायस्वरूप और द्रव्यस्वरूप जानना योग्य है । - अथवा इन दो गाथाओसे समयरूप व्यवहार कालका व्याख्यान किया जाता है । निश्चय कालका व्याख्यान तो "उप्पाढो पव्भसो" इत्यादि तीन गाथाओसे आगे करेंगे । सो इस तरह पर है कि प्रदेशमात्र पुद्गल द्रव्यरूप परमाणुकी मदगतिसे किसी विवक्षित एक आकाशके प्रदेशपर जाते हुए जो वर्तन करती है वह निश्चय कालकी समय पर्याय अग रहित है । यह पहली गाथाका व्याख्यान है । वह परमाणु उस आकाशके पदेशपर जब पतन करता है तत्र उस पुद्गल परमाणुके मन्दगतिसे गमनमे जो काल लगा है उसीके समान समय है इसलिये एक समय अश रहित है । अर्थात् समय सबसे छोटा काल है । इस तरह वर्तमान समय कहा गया । अब आगे पीछेके समयोको कहते है कि इस पूर्वमे कहे हुए वर्तमान समयसे आगे कोई समय होयगा तथा पूर्वमे कोई समय हो चुका है इस प्रकार अतीत, अनागत, वर्तमानरूपसे तीन प्रकार व्यवहारकाल कहा जाता है । इन तीन प्रकार समयोमे जो कोई वर्तमानका समय है वह उत्पन्न होकर नाश होनेवाला है । अतीत और अनागत संख्यात, असख्यात और अनंत समय है । इस तरह स्वरूपके धारी कालके होते हुए भी यह जीव अपने
SR No.009946
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 02 Gneytattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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