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द्विताय खड।
[१७ खंभे भिन्न २ होने पर ही एक पग एकसे उठाकर दूसरेपर नियमित रूपसे रक्खा जा सक्ता है परन्तु यदि चौरस जमीन हो तो एक नियमित रूपसे पग नही पड़ सक्ता है-कभी अधिक क्षेत्र उल्लंघा नायगा कभी कम । इसी तरह कालाणु अलग अलग हैं तब ही परमाणुकी नियमित मंदगति संभव है । इस गतिकी सहायतासे ही कालको समयनामा पर्याय होती है। इसलिये काल द्रव्यका एक प्रदेशपना सिद्ध है । इस विचारसे यह बात भी समझमे आनाती है कि लोकाकाशमें परमाणु भी भरे हैं और वे सब हलनचलन करते रहते है। एक परमाणुका कुछ हिलना ही एक कालाणुसे अन्य कालाणुपर जाना है । यही सहायक कारण है जिससे लोकाकाश व्याप्त सर्व कालाणु सदा परिणमन करते रहते है। परमाणु हलन चलन करते कहते हैं अर्थात् चल हैं इसका प्रमाण श्री गोम्मटसार जीवकाडमें इसतरह दिया गया है--
पोगलदवम्हि अणू सखेज्जादी हवति चलिदा हु। चरिममहक्खधम्म य चलाचला होति हु पदेसा ॥५९२॥
भावार्थ-पुद्गलद्रव्यमे परमाणु तथा संख्यात असंख्यात आदि अणुके नितने स्कध है वे सभी चल है, किन्तु एक अतिम महा स्कंध चलाचल है क्योकि उसमें कोई परमाणु चल हैं, कोई परमाणु अचल है । परमाणुसे लेकर पुद्गल स्कधके २३ भेद हैं।
उनमेंसे तेईसवा भेद महास्कंध हैं उसको छोडकर अणु, वं संख्याताणुवर्गणा, असंख्याताणुवर्गणा, अनन्ताणुवर्गणा, आहारदगणा, तैनसवर्गणा, भाषावर्गणा, मनोवर्गणा, कार्माणवर्गणा आदि वाईसवर्गणाएं सब चलरूप हैं-हलनचलन करती रहती हैं।