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________________ - श्रीप्रवचनसारीका। काल द्रव्यकी वर्तना होती है अर्थात उसकी समय पर्याय प्रगट होती है। श्री जयसेनाचार्य और अमृतचन्द्राचार्य दोनोंकी वृत्ति-' योसे यही बात प्रगट होरही है कि जैसे आकाशादि पांच द्रव्योंकी परिणतियोंके या पर्यायोंके पलटनेमें काल द्रव्य सहकारी उदासीन कारण है । यद्यपि वे पांचों ही द्रव्य अपनी शक्तिसे ही परिअमन करते हैं तैसे ही काल द्रव्यकी वर्तना अर्थात् समय समय परिणमनेमें पुद्गल परमाणुका एक कालाणु व्याप्त आकाशके प्रदेशसे दूसरे कालाणु व्याप्त आकाशके प्रदेशपर मंदगतिसे जाना सहकारी कारण है। उपादान कारण तो स्वयं कालद्रव्यकी शक्ति है। हरएक कार्यके लिये दो कारणोकी आवश्यक्ता है'उपादान और निमित्त । पांचों द्रव्योंकी पर्यायोके होनेमे उपादान कारण वे स्वयं हैं परन्तु कालद्रव्य निमित्त सहकारी है। इसी तरह कालद्रव्यके वर्तमानमें उपादान कारण कालाणु है और सहकारी निमित्तकारण पुद्गल परमाणुका मंदगमन है। कालद्रव्यके वर्तनको ही समयकी प्रगटता या समय पर्याय कहते है । कालद्रव्यको यदि लोकाकाश प्रमाण अखंडद्रव्य माना जाता तो कालद्रव्यकी वर्तना नही हो सक्ती थी और न समय पर्याय ही उत्पन्न होती। आकाशद्रव्य तो अखंड है, उसके प्रदेश भिन्न २ नहीं हैआकाशमे प्रदेशोंकी कल्पना मात्र मापकी अपेक्षासे है। कालाणु अलग अलग होनेसे ही एक परमाणु मरगतिसे एक कालाणु व्याप्त प्रदेशसे दूसरे पर जा सक्ता है। अखंड कालद्रव्य लोकाकाशके बराबर मानते तो परमाणुझी नियमित मंदगति नहीं होती तब कालकी समय पर्य.य नही पैदा होसक्ती । दो
SR No.009946
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 02 Gneytattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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