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द्वितीय खंड।
[१९५ विशेषार्थ:-समय नामा पर्यायका उपादान कारण कालाण है इसमे कालाणुको समय कहते हैं । वह कालाणु दो तीन आदि प्रदेगोंमे रहित मात्र एक प्रदेशवाला है इससे उसको अप्रदेशी कहते है । वह कालाणु पुद्गल द्रव्यकी परमाणुकी गतिकी परिणति रूप सहकारी फारणसे वर्तन करता है । हरएक कालाणुमे हरएक लोकाकागका प्रदेश व्याप्त है । जब एक परमाणु मदगतिसे ऐसे पास वाले प्रदेशपर जाता है तब इसकी गतिके सहायसे काल द्रव्या वर्तन करता हुआ समय पर्यायको उत्पन्न करता है | जैसे स्निग्ध रूम गुणके निमित्तसे पुगलके परमाणुओंका परस्पर बन्ध होजाता है इस तरहका बध कालाणुओका कमी नहीं होसक्ता है इसलिये कालाणुको अप्रदेगी कहते हैं। यहां यह माव है कि पुद्गल परमाणुका एक प्रदेश तक गमन होना ही सहकारी कारण है, अधिक दूर तक जाना सहकारी कारण नहीं है इससे भी ज्ञात होता है कि कालाणु द्रव्य एक प्रदेशरूप ही है।
भावार्थ-इस गाथामें आचार्यने काल द्रव्यकी वर्तनाको व उसके एक प्रदेगीपनेको समझाया है | श्री अमृतचन्द्र आचार्यकी सस्तवृत्तिका यह माव है कि कालाणु द्रव्य अपदेशी है, वह पुद्गल द्रव्यकी तरह व्यवहारसे भी बहुत प्रदेशी नहीं है क्योकि वह कालाणु द्रव्य आकाश द्रव्यके प्रदेशोके प्रमाण असंख्यात द्रव्य हैं, रत्नकी राशिके समान फेले हुए हैं तथापि वे परम्पर कभी मिलते नहीं हैं। एक एक आकाशके प्रदेगको व्याप्त करके कालाणु ठहरे हुए है। नए पुद्गल परमाणु मढ गतिसे एक कालाणु व्याप्त आकारा प्रदेशमे निकटवर्ती कालाणु व्याप्त आकाश प्रदेशपर जाता है तब