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१९४] श्रीप्रवचनसारटोका । परमाणु रोकता है उसको प्रदेश कहते हैं। इस मापसे यदि द्रव्योको 'मापा जावे तो आकाशके अनंत, धर्म द्रव्यके असंख्यात, अधर्म द्रव्यके असंख्यात, पुद्गलके संख्यात, असंख्यात, अनंत व हरएक जीवके असंख्यात प्रदेश मापमें आवेंगे | काल द्रव्यका मात्र एक प्रदेश । ही रहता है । यद्यपि हरएक जीवके असख्यात प्रदेश हैं तथापि यह जीव शरीरके प्रमाण संकुचित रहता है। केवल समुद्घातमें प्रदेश लोकव्यापी होते हैं । यह जीव बालकके शरीरमें छोटे प्रमाणका होता है। ज्यों २ बालक बढ़ता जाता है जीवके प्रदेश भी फेलते जाते हैं । इसके शरीरप्रमाण व संकोचने 'फेलनेकी क्रिया हम सबको प्रत्यक्ष प्रगट है। शरीरप्रमाण आत्मा है इसीसे शरीरके हरएक भागमें ज्ञान है व दुःख सुखका अनुभव है ॥ ४७॥
इस तरह पांचवें स्थलमें स्वतंत्र दो गाथाएं कहीं।
उत्यानिका-आगे काल द्रव्यके दो तीन आदि प्रदेश नहीं हैं मात्र एक प्रदेश है इसीसे वह अप्रदेशी है ऐसी व्यवस्था करते हैं
समओ दु अप्पदेसो पदेसमेत्तस्स दव्यजादस्स । वदिवददो सो वदि पदेसमागासव्वस्स ॥ ४८ ॥ समयस्त्वप्रदेशः प्रदेशमात्रस्य द्रव्यजातस्य ।
व्यतिपततः स वर्तते प्रदेशमााशद्रव्यस्य ॥ ४८ ॥ • अन्वयसहित सामान्यार्थ-(समओ दु अप्पदेसो) काल द्रव्य-, निश्चयसे अप्रदेशी है (सो) वह काल द्रव्य (पदेशमेत्तस्स दव्वनादस्स) प्रदेश मात्र द्रव्यरूप परमागुके ( आगांसदव्वस्स पदेसम् ) आकाश द्रव्यके प्रदेशको (वदिवददो) उल्लंघन करनेसे ( वट्टदि), वर्तन करता है।