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द्वितीय खंड
[१६३ गुणोंको उसीरूप : वनाए रखता है। न कोई गुण किसी द्रव्यसे छूटकर दूमरेमें मिलता है न कोई द्रव्य अन्य द्रव्य रूप होता है।
तात्पर्य यह है कि इन छहोद्रव्योंके मध्यमे पडे हुए अपने आत्माके खभावको सर्व पुद्गलादिसे भिन्न अपने निज शुद्ध खरूपमें अनुभव करना योग्य है ।। ४६ ॥ .
उत्थानिका-जैसे एक परमाणुसे व्याप्त क्षेत्रको आकाशका प्रदेश कहते हैं वैसे ही अन्य द्रव्योके प्रदेश भी होते है, ऐसा कहते हैं
जध ते णभप्पदेसा तधप्पदेसा हवंति सेसाणं । अपदेसो परंमागू तेण पदेसुमयो भणिदो ॥ ४ ॥ यथा ते नभःप्रदशा तथा प्रदशा भवन्ति शाणाम् । • अप्रदेश. परमाणु तेन प्रदेशोदभवो भणित ॥ ४७ ॥
अन्वयसहित सामान्यार्थ-(जध ) जेमे (ते णभष्पदेमा) आकाशद्रव्यके वे अनन्त प्रदेश होते है ( तधप्पदेसा सेसाणं हवति ) तैसे ही धर्मादि अन्य द्रव्योंके प्रदेश होने है । (पग्माणू अपदेसो) एक अविभागी पुद्गलका परमाणु बहुप्रदेशी नही है (तेण) उस परमाणूसे (पदेसुब्भवो भणिदो) प्रदेशकी प्रगटता कही गई है।
विशेपार्थ-एक परमागु जितने आकाशके क्षेत्रको रोकता है उसको प्रदेश कहते है उस परमाणुके दो आदि प्रदेश नहीं है । इस प्रदेशकी मापसे आकाश व्यकी तरह शुद्ध बुद्ध एक ' स्वभाव,परमात्म द्रव्यको आदि लेकर शेष द्रव्योके भी प्रदेश होते हैं । इनका विस्तारसे कथन आगे करेंगे। । भावार्थ-इस गाथामें आचार्य ने यह बताया है कि द्रव्योके माप करनेका गन प्रदेश है । जितने आकाशके क्षेत्रको एक पुद्गल