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२९२] श्रीप्रवचनसारंटोका ।' तथा स्थूल स्थूलको जगह नहीं देते किन्तु स्थूल सूक्ष्म और सूक्ष्म स्थूल, तथा सूक्ष्म और सूक्ष्म सूक्ष्म सभी प्रकारके पुद्गलोंको तथा स्थूल और स्यूल स्थूल पुद्गल स्थूल सूक्ष्म तथा सूक्ष्म स्थूल आदिको यथासंभव स्थान दे सक्ते हैं इनमें भी विशेष अवगाहना शक्ति है। जैसे स्थूल सूक्ष्म दीपका प्रकाश, चंद्रका प्रकाश, तथा धूप, छाया आदि है जहां ये हों वहां अनेक दीपकोंका प्रकाश व अनेक अन्य पुद्गल सुखसे जगह पालते हैं। शब्द, वायु आदि सूक्ष्म पुद्गल स्कंध हैं। जहां एक दो शब्द गूंज रहे हों वहां और अनेक शब्द आसक्ते हैं तथा अन्य पुद्गल स्कंध भी जहां वायु भरी हो वहां अन्य वायु व अन्य पुद्गल स्कंध भी 'आसक्ते हैं। इस तरह मूर्तीक पुद्गल एक दुसरेको स्थान देते हैं । इसमें कोई प्रकारका विरोध नहीं है जो असंख्यात प्रदेशी लोकाकागमे अन्य निर्बाधा अमूर्तीक द्रव्योके साथ साथ अनंत पुगल स्थान प्राप्त कर लें। इस तरह यह बात दिखाई गई कि यह लोक सर्वत्र छ. द्रव्योसे भरा हुआ है। यद्यपि छः द्रव्य परस्पर मिल रहे है तथापि कोई द्रव्य अपनेर स्वभावको नही छोड़ते है जैसा कि श्री पंचास्तिकाबमें कहा है:.. अण्णोष्ण पविसंता दिता ओगासमण्णमण्णस्स ।
मेलता वि य णिचं सगं समावं ण दिजइति ॥ ७ ॥
भावार्थ-ये छहो द्रव्य एक दूसरेमें प्रवेश करते हुए, व नित्य एक दूसरेको आवकाश देते हुए तथा नित्य मिलते हुए अपने २ खभावको नहीं छोड़ते हैं, क्योकि इनमे अगुरुलघु नामका एक साधारण गुण है जो हरएक द्रव्यको व उसके अनंत